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राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण दूसरे दिन उसने अपने मंत्री आदि अधिकारियों को बुलाकर फिर मंत्री से कहा
कहा
सेनापति ! काराबार में जितने भी बंदी हैं, सबको मुक्त कर दो। मैंने सबको क्षमा कर दिया है।
लोग सुनकर आपस में बातें करने लगे
यह राजा एक ही दिन में इतना कैसे बदल गया ? कल तक प्रजा का खून चूसने में मजा आता था, वह आज प्रजा के लिए सबकुछ लुटा रहा है।
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यह सब
केशीकुमार भ्रमण का प्रभाव है। धन्य है परोपकारी संता
राज्य की जितनी आय है, उसको 'चार भागों में बाँट दिया जाये। एक भाग राज्य की सुरक्षा व्यवस्था और सेना के लिए, एक भाग को प्रजा के लिए खर्च किया जाये। तीसरे भाग को राजा के परिवार और सेवकों के भरण-पोषण में खर्च किया जाये और चौथे भाग का सुरक्षित कोष बनाया जाये। जिससे गरीबों, अनाथों, तपस्वियों, ब्राह्मणों, मुनियों और साधु-श्रमणों आदि का पालन-पोषण रक्षण किया जाये।
राजा ने चित्त मंत्री से कहा
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चित्त! अब राज्य की सारी जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है। मैं अपने किये पापों का प्रायश्चित कर आत्मा को पवित्र बनाऊँगा ।
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