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हरहस्य
क संगीतकार के संगीत-कक्ष में दीवार पर एक ढोलक टॅग रहा था और खिड़की में बाँसुरी रखी हुई थी। संगीतकार के पुत्र ने उस कक्ष में प्रवेश किया। उसने - बाँसुरी उठायी। अधरों पर रखकर उसे बजाने लगा। बाँसुरी बजाने के पश्चात् बालक ने उसे यथास्थान पर रखकर ढोलक पर एक थाप लगायी। कमरा ढोलक के शब्द से गूंज उठा। बालक संगीत-कक्ष से बाहर चला गया।
दुःखी होते हुए ढोलक ने बाँसुरी ने कहा-"बहन, मेरा कैसा दुर्भाग्य है कि जो भी आता है वह मुझे मारता है और तुम्हें प्यार से अपने अधरों पर लगाता है। मेरा जीवन मार खाते-खाते ही बीत रहा है।"
बाँसुरी ने धीरे से कहा-"ढोलक भैया ! बुरा मानने की आवश्यकता नहीं है। वस्तुतः हम दोनों एक समान हैं। तुम्हारे अन्दर भी पोल है और मेरे अन्दर भी। मैंने अपनी पोल को सात-सात छिद्रों के द्वारा जनता के सामने रख दिया है, किन्तु तुमने अपनी पोल को मृत-चर्म से ढकने का प्रयास किया है, जिसके कारण लोग तुम्हें पीटते हैं।" ढोलक बाँसुरी की बात सुनकर अन्तर्दर्शन करने लगा।
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जैसे को तैसा
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रोधी दल का एक सदस्य एक मन्त्री महोदय से मिलने के लिए पहुंचा। मन्त्री महोदय के सचिव ने जरा मुँह को मटकाते हुए कहा-"मुझे अपार
खेद है कि मन्त्री महोदय से आपकी भेंट नहीं हो सकेगी, क्योंकि उनकी पीठ में अत्यधिक दर्द है।"
सदस्य ने मुस्कराते हुए कहा-"तुम उन्हें यह समाचार दो कि मैं कुश्ती लड़ने नहीं, उनसे वार्तालाप करने आया हूँ। वे भले ही लेटे रहें वार्तालाप तो ही हो जायेगा।"
सचिव के पास उसका कुछ भी उत्तर नहीं था।
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