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आज्ञा लेकर राजा बैठ जाता है। फिर पूछता है
मुनि जी ! क्या आप यह मानते हैं जीव और शरीर दोनों अलग-अलग हैं ?
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राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण
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राजन् ! हम ऐसा मानते ही नहीं, ऐसा ही है। शरीर का नाश होने पर भी जीव का नाश नहीं होता। आत्मा तो अमर है।
अगर आत्मा अमर है तो बताइए मेरे दादा जो मेरे जैसे ही हिंसा प्रेमी थे, आपके शास्त्र अनुसार वे मरकर नरक में गये होंगे।
परन्तु उन्होंने आज तक मुझे आकर नहीं कहा कि वत्स, मैंने हिंसा का यह दुष्फल पाया है। तू हिंसा मत करना। अगर कह देते तो मैं आपका सिद्धान्त सत्य मान लेता।
नहीं ! ऐसे अपराधी को नहीं छोड़ सकता।
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राजन् ! सोचो, तुम्हारा कोई घोर अपराधी है। बड़ी मुश्किल से पकड़ में आया है। तुमने उसे मृत्युदण्ड दिया हो, वह कहे कि मुझे कुछ देर के लिए छोड़ दो, मैं अपने परिवार में जाकर कह दूँ कि तुम कोई ऐसा अपराध मत करना, तो क्या तुम उसे छोड़ दोगे ?
पापात्मा नरक में जाता है, वहाँ पर परमाधार्मिक | देव (यमदूत) उनको पकड़कर अति घोर यातनाएँ देते हैं। वे उनको एक क्षण के लिए भी कहीं जाने नहीं देते।
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हाँ! हिंसा करने वाले तो नरक में ही जाते हैं।
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