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अच्छा! हमारे विचारों
के विरोधी हैं। तब तो चलो, इनसे बहस करने में
मजा आयेगा। #
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"De Fons
राजा ने चौंककर कहा
Bevowe
यह आप क्या कह रहे हैं ?
इन्डीहर
हैं! मेरी लुप्त बात आपने कैसे जानी ? क्या आप ज्ञानी हैं ?
तुमने वहाँ वृक्ष के नीचे खड़े होकर हमें मूर्ख लोग (जड - मूढ़)
बताया ? Sahy
राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण
चित्त को साथ लेकर राजा मुनि के पास आता है
Hawa
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20
Pho
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मुनि ! क्या आप सचमुच ज्ञानी हैं शरीर और जीव को अलग-अलग मानते हैं ?
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मैंने अपने
मनोज्ञान (मनः पर्यव ज्ञान) से तुम्हारे वे विचार जाने हैं।
# राजा प्रदेशी का यह मानना था कि आत्मा का अलग से कोई अस्तित्त्व नहीं होता।
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प्रदेशी !
तुम राजा होकर सामान्य शिष्टाचार नहीं जानते।
अच्छा! मैं
आपसे चर्चा
करना चाहता
हैं। क्या मैं यहाँ बैठ जाऊँ ?
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