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________________ भगवान महावीर के श्रीमुख से प्रदेशी राजा के भूतकाल और भविष्य के जीवन प्रसंगों को सुनने के पश्चात् गौतमस्वामी केहृदय में उल्लास उत्पन्न हुआ और उन्होंने भगवान की वन्दना करकेकहा CO भन्ते! जैसा आप फरमाते हैं, वह वैसा ही है। AMOM भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार करकेगौतम ध्यान, चिन्तन में लीन हो गये। समाप्त कथाबोध प्रदेशीराजा का चरित्रहमें अनेक शिक्षाएँ देता है. जिसे अपनी आत्मा पर श्रद्धा और विश्वास नहीं है, उसमें दया, करुणा, प्रेम, सेवा, सहनशीलता आदि सगुण नहीं आ सकते। इसलिए सबसे पहले अपने आप पर, अपनी सत्ता पर विश्वास करो। यह समझो हमारा शरीर तो नाशवान है, इसमें रहा आत्मा अमर है। शरीर की सुख-सुविधा और भोगों के लिए आत्मा को पतित और मलिन नहीं करना चाहिए। . प्राणी जैसा कर्म करता है, उसका फल भी उसे भोगना ही पड़ता है। इसलिए कभी दुष्कर्म, अत्याचार और अनीति का मार्ग मतपकड़ो। . साधारण मनुष्य अज्ञान और वासनाओं से मूढ़ है। जब सच्चे ज्ञानी गुरु मिलते हैं तब सबोध देकर उसे कल्याण का मार्ग बताते हैं। गुरु के बिना ज्ञान नहीं।। आत्मा को देखने वाले की दृष्टि में समूचा संसारही उसका मित्र है। अहित करने वाला, अपराधी पर भी उसे क्रोध नहीं आता। वह सबको क्षमा करता है। सदा समता भाव में रहता है। इसलिए शरीर की पीड़ा भी उसे विचलित नहीं कर सकती। जीवन में धर्म भावना आते ही सबसद्गुण अपने आप आ जाते हैं। प्रदेशी जैसा क्रूर अत्याचारी निर्दयीराजाभी धर्म के प्रभाव से, सत्संग के फलस्वरूपऐसा महान त्यागी, क्षमाशील और सहनशील बन गया कि जहर देने वाली पत्नी पर उसने क्रोध नहीं किया। सबको क्षमा ! सबको प्रेम ! यही है धर्म की पहचान्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002855
Book TitleRaja Pradeshi aur Keshikumar Diwakar Chitrakatha 056
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size21 MB
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