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राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण कुछ लकड़हारे जंगल में गये। खाना पकाने के लिए आग साथ ले गये थे, परन्तु वह बुझगई। तब एक बुजुर्ग ने कहा
अरणी की लकड़ी से आग निकाल लेना।
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(फिर क्या हुआ?
बुजुर्ग चला गया। पीछे से लकड़हारे ने खाना पकाने के लिए अरणी लकड़ी के टुकड़े किये, परन्तु आग नहीं मिली। उसने छोटे-छोटे टुकड़े करके खूब देखा, परन्तु उसमें आग कहीं नहीं मिली।
अरे! इसमें तो आग है ही नहीं। कितने टुकड़े कर डाले फिर भी आग
नहीं निकली।
तभी बुजूर्ग आया। उसने कहा-लायो । मझे दो।
तुम झूठे हो, अरणी में तो आग है ही नहीं। देखो, मैंने कितने टुकड़े
कर डाले।
बुजुर्ग ने अरणी लकड़ी लेकर जोर से घर्षण किया, तो उसमें से आग की चिनगारियाँ फटने लगी। आग मिल गई। देखो आग
वाह! निकल गई
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