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सुनाई देती है।
राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण जब शब्द जैसी भौतिक वस्तु ।। चलो, माना कि जीव भी छिद्र रहित स्थान से निकल | छिद्र रहित स्थान से भी सकती है और दिखाई नहीं पड़ती निकल सकता है परन्तु तो जीव जैसी अभौतिक वस्तु को दिखाई तो देना चाहिए। निकलने में क्या दिक्कत है ?
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फिर अपना अनुभव बताया
इसके अन्दर तो कोई जीव नहीं है।
मैंने एक बार एक अपराधी को । मृत्युदण्ड दिया। उसके शरीर के टुकड़ेटुकड़े करके देखा कि उसकी आत्मा या जीव नाम की वस्तु कहाँ है, परन्तु
मुझे तो वह दिखाई नहीं दी।
मुनि मुस्कराये
राजन् ! तुम तो उन लकड़हारों जैसी मूर्खता की बात करते हो।
कौन लकड़हारे? क्या मूर्खता की उन्होंने ?
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