Book Title: Raja Pradeshi aur Keshikumar Diwakar Chitrakatha 056
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 16
________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण मुनिवर! मैंने एक मैंने एक चोर को मृत्युदण्ड प्रयोग द्वारा सिद्ध कर दिया दिया। लोहे की सीलबन्द कुंभी में कि शरीर के अन्दर आत्मा उसे जीवित ही बन्द करके ऊपर से नाम की कोई वस्तु मिट्री का लेप करवाकर उसे, नहीं होती है। हवाबन्द कर दिया। आपने क्या प्रयोग किया? राजन् ! CGALAN कुछ दिन बाद मैंने उस कुंभी को खुलवाया, तो वह चोर मरा हुआ मिला। परन्तु उस कुंभी में कहीं भी कोई छेद नहीं हुआ। बताइये जीव कहाँ से निकला? इससे यही सिद्ध होता है कि शरीर नष्ट होते ही जीव नष्ट हो जाता है। दोनों एक ही हैं। Dhan U OUOVU राजन् ! एक कूटाकार शप्ला है। उसका एक ही दरवाजा है। उसमें कोई पुरुष नगाडा लेकर घुस गया। बाहर से चारों तरफ से हवाबन्द छिद्र रहित कर दिया गया। भीतर बैठा वह नगाड़ा बजाता है तो उसकी आवाज बाहर सुनाई देती है या नहीं? OOOUUOOL Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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