Book Title: Raja Pradeshi aur Keshikumar Diwakar Chitrakatha 056
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 25
________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण कहानी का सार समझाते हुए आचार्यश्री ने कहा प्रदेशी ! तुम भी अपने दादा के विचारों की दुराग्रह सांकलों में जकड़े फेरीवाला आँखें फाड़-फाड़कर उसका वैभव देखने लगा और अपना सिर पीटने लगा Jain Education International हाय ! मैं तो बर्बाद हो गया। पर अब पछताये होत क्या............! फिर राजा ने हाथ जोड़कर निवेदन कियामुझे आपका दर्शन स्वीकार है। अब विश्वास हो गया है कि आत्मा और शरीर भिन्न हैं। पाप और पुण्य का फल आत्मा को भोगना पड़ता है। कृपया मुझे धर्म का ज्ञान दीजिए। रहोगे तो ऐसे ही पछताना न पड़े ! गुरुदेव ! मैं आपका भाव समझ गया। सत्य को समझकर मिथ्या आग्रह रखना मूर्खता है, मैं ऐसा मूर्ख नहीं हूँ। | केशीकुमार श्रमण ने राजा प्रदेशी को अहिंसा, दया, सत्य, ब्रह्मचर्य, त्याग, तप आदि तत्त्वों का रहस्य | समझाया और कहाराजन् ! प्राणी जैसा कर्म करता है, उसे वैसा फल भुगतना ही पड़ता है। इसलिए सदा सत्कर्म करो। अच्छे कर्म अच्छे फल देने वाले हैं। www गुरुदेव ! आज से मैं आपका बताया तप-संयम का मार्ग स्वीकार करता हूँ। हिंसा को त्यागकर सबके साथ दया करुणा और प्रेम का व्यवहार Frauds करूँगा। | राजा केशी श्रमण को वन्दना करके अपने महलों में आ गया। 23 For Private & Personal Use Only www.jainellary.org

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