Book Title: Raja Pradeshi aur Keshikumar Diwakar Chitrakatha 056
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 20
________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण नहीं! हवा तो कभी पकड़ में नहीं आ सकती। राजन् ! हवा तो रूपी द्रव्य है, जब वही पकड़ में नहीं आ सकती तो अरूपी आत्मा को पकड़कर कैसे बताया जा सकता है? तो क्या तुम इस हवा को पकड़कर मुझे दिखा सकते हो? प्रदेशीराजा ने फिर पूछा अच्छा महाराज! आपकहते हैं हाथी में और चींटी में एक समान ही आत्मा होती है। हाँ राजन्! आत्मा का प्रकाश सभी में समान है। क्या चींटी में नहीं चींटी से हाथी हाथी के समान ही बल अधिक शक्तिशाली और शक्ति है? होता है। तो फिर दोनों की आत्मा समान कैसे हो सकती है ?) Jain Education International For Privat 1&ersonal Use Only www.jainelibrary.org

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