Book Title: Raja Pradeshi aur Keshikumar Diwakar Chitrakatha 056
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 14
________________ अच्छा! हमारे विचारों के विरोधी हैं। तब तो चलो, इनसे बहस करने में मजा आयेगा। # WHE "De Fons राजा ने चौंककर कहा Bevowe यह आप क्या कह रहे हैं ? इन्डीहर हैं! मेरी लुप्त बात आपने कैसे जानी ? क्या आप ज्ञानी हैं ? तुमने वहाँ वृक्ष के नीचे खड़े होकर हमें मूर्ख लोग (जड - मूढ़) बताया ? Sahy राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण चित्त को साथ लेकर राजा मुनि के पास आता है Hawa Wy 20 Pho aura मुनि ! क्या आप सचमुच ज्ञानी हैं शरीर और जीव को अलग-अलग मानते हैं ? 14 मैंने अपने मनोज्ञान (मनः पर्यव ज्ञान) से तुम्हारे वे विचार जाने हैं। # राजा प्रदेशी का यह मानना था कि आत्मा का अलग से कोई अस्तित्त्व नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only प्रदेशी ! तुम राजा होकर सामान्य शिष्टाचार नहीं जानते। अच्छा! मैं आपसे चर्चा करना चाहता हैं। क्या मैं यहाँ बैठ जाऊँ ? wowwh 12 www.jainelibrary.org

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