Book Title: Raja Pradeshi aur Keshikumar Diwakar Chitrakatha 056
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 13
________________ राजा प्रदेशी औरकेशीकुमार श्रमण |चित्त मंत्री ने राजा प्रदेशीको केशीकुमार श्रमण के दर्शन के लिये ले जाने की एक योजना बनाई। वह अगले दिन सुबह चारघोड़ोंवालाएकरथलेकरराजमहलों केसामने पहुँचा।राजा केपासजाकर बोला महाराज! कबोज वाह! तो चलो। सेजो चार घोड़े भेंट आज इनकी सवारी आये थे, उनको करके परिक्षा प्रशिक्षित कर दिया लीजायो है। अब वे परीक्षण के लिए तैयार हैं। COLORRIT inoxfe तैयार होकर राजा रथ में सवार हो गया। चित्त मंत्री सारथी की जगह बैठकर घोड़ों को दौड़ाने लगा। मंत्री घोड़ों को तेजगति से दौड़ाता हुआ दूर बहुत दूर ले गया। राजा बोला महाराज! यह सामने चित्त! इतनी ( पाindi ही हमारा मगवन उद्यान तेज धूप में मैं तो है। वहाँ चलकर आप पसीना-पसीना हो गया हूँ। विश्राम कीजिए। भूख-प्यास भी सता रही है। अब कहीं विश्राम करो जरा छायादार बगीचा देखो। राजा को लेकर चित्त मंत्री उद्यान में आ गया। राजा विश्राम करने लगा। तभी उसने देखा पास ही मुनि केशी श्रमण धर्म-प्रवचन कर रहे हैं। सामने सैकड़ों स्त्री-पुरुष बैठे उनका प्रवचन सुन रहे हैं। चित्त ! ये मूर्ख व्यक्ति कौन है? जोर-जोर से क्या कह रहा है और हमारे बगीचे में क्या कर रहा है? राजन् ! ये भगवान पार्श्वनाथ के शिष्य AAJANATANP केशीकुमार श्रमण हैं। बड़े ज्ञानी हैं। इनका मानना है शरीर और जीव दोनों एक नहीं अलग-अलग हैं। DA ७४-900AS Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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