Book Title: Raja Pradeshi aur Keshikumar Diwakar Chitrakatha 056
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 11
________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण उपदेश सुनने के बाद चित्त मंत्री मुनि के पास आकर बोलागुरुदेव! आपका १ भद्र ! जिसमें तुम्हारी उपदेश मुझे बहुत अच्छा आत्मा का कल्याण हो लगा। मैं भी श्रावक धर्म वैसा कार्य शीघ्र करो। स्वीकारना चाहता हूँ। मंत्री ने श्रावक धर्म स्वीकार कर लिया। अब वह प्रतिदिन श्रमण केशीकमार के उपदेश सुनने जाता। चित्त मंत्री कई दिनों तक श्रावस्तीरुका। उसने वहाँकेराजा केसाथ अनेक प्रकार की संधियाँ की। एक दिन उसने राजा से कहा महाराज! अब ठीक है मंत्रीजी, कल मैं अपने हमारी तरफसेआपके राज्य को लौटना महाराज को मैत्री चाहता हूँ। का सन्देश देना। HAOn राजा ने मंत्री को अनेक सुन्दर उपहार आदि दिये। विदा लेकर मंत्री रथ में सवार होकर सीधा बगीचे में । मुनि मंत्री की तरफ देखकर मुस्कराये। मंत्री ने दुबारा। केशी श्रमण के पास आया कहा- महामुने! क्या गुरुदेव! मैं अपना कार्य करके Erroman मेरी प्रार्थना वापस अपने राज्य को जा रहा हूँ। स्वीकार होगी? गुरुदेव ! सेयविया नगरी बहुत सुन्दर है। कभी आप भी वहाँ पधारने की कृपा करें। बहुत बड़ा उपकार होगा। cation International For Private Personal Use Only www.jalgelibrary.org

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