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किन्तु अपने राज्य का तो व्यापार-धंधा सब चौपट हो रहा है। जितना कर (टैक्स) वसूल होता है, उससे तो सेना का खर्चा ही पूरा नहीं चलता ?
राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण
फिर कुछ देर सोचकर बोला
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श्रावस्ती पहुँचकर मंत्री वहाँ के राजा जितशत्रु के दरबार में पहुँचा
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महाराज की जय हो ! मैं सेयविया का मंत्री चित्त आपका अभिनन्दन करता हूँ। महाराज ! हमारे राजा की तरफ से ये भेंट स्वीकार कीजिये।
दूसरे ही दिन मंत्री चित्त श्रावस्ती के राजा को भेंट के लिए सुन्दर कीमती वस्त्र, आभूषण और तरह-तरह के | फल-मिष्टान्न आदि सामान रथों में भरकर चल दिया
प्रति
आइये मंत्री जी! आपका स्वागत है।
तुम श्रावस्ती में जाओ ! वहाँ के राजा के साथ अपना व्यापार और मैत्री-सम्बन्ध बढ़ाने की बात करो। राज्य की सुख-समृद्धि का रहस्य पता लगाओ।
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ठीक है महाराज ! मैं कल ही श्रावस्ती
जाऊँगा।
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मंत्री को उद्यान के बीच बने राजकीय अतिथि भवन में ठहरा दिया गया।
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