Book Title: Purvbhav Ka Anurag Author(s): Dulahrajmuni Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 5
________________ आशीर्वाद श्रमनिष्ठा, सेवानिष्ठा और श्रुतनिष्ठा इन त्रिवेणी में जिन्होंने अपने जीवन को अभिस्नात किया है, वे हैं - मुनि दुलहराजजी । मेरी सेवा में अहोभाव से संलग्न रहे हैं। इन्होंने सेवा के साथ श्रुत की उल्लेखनीय और अनुकरणीय उपासना की है। मेरे साहित्य-संपादन का कार्य वर्षों तक जागरूकता के साथ किया। आगम संपादन के कार्य में अनन्य सहयोगी रहे। 'आगममनीषी' संबोधन इनकी सेवाओं का एक मूल्यांकन है। इनका हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, प्राकृत, गुजराती आदि भाषाओं पर अच्छा अधिकार है। इसीलिए ये संस्कृत, प्राकृत साहित्य के भाषान्तरण में सफल रहे। इन्होंने अनेक गुजराती उपन्यासों का भी हिन्दी भाषा में सरस और प्रांजल शैली में रूपान्तरण किया है। प्रस्तुत कृति 'पूर्वभव का अनुराग' उसकी एक निष्पत्ति है। इससे पाठक वर्ग लाभान्वित हो सकेगा। १ मई २०१० सरदारशहर आचार्य महाप्रज्ञPage Navigation
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