Book Title: Purusharth Siddhi Upay Author(s): Amrutchandracharya, Vishuddhsagar Publisher: Vishuddhsagar View full book textPage 7
________________ 30. 31. 43. 44. 45. 32. 33. 34. 35. 36. कषाय भावों के अनुसार ही फल की प्राप्ति 37. बहुजनों की हिंसा का फल एक को एवं एक की हिंसा का फल अनेक को निर्बन्ध ही शरण हैं गुरु 38. 39. मिथ्यात्व का शमन करने वाला जिन नयचक्र 40. हिंसा त्यागने के उपाय श्रावकों के अष्ट मूल गुण 41. 42. 46. 47. 48. 49. 50. 51. पुरुषार्थ सिद्धि उपाय आचार्य अमृत चंद्र स्वामी : पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 7 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 52. 53. 54. 55. 56. 57. 58. 59. 60. 61. मुनि भेष ही समयसार है राग - हिंसा, राग का अभाव - अहिंसा प्रमाद में हिंसा, अप्रमाद में अहिंसा कषाययान ही कसाई हैं निश्वयाभास से मोक्ष की असिद्धि परिणति से हिंसा / अहिंसा - मदिरापान के दुष्परिणाम माँस फल-फूल नहीं, प्राणियों का कलेवर हैं मत करों अधिक हिंसा-लालसा के पीछे की पुण्य शहद का सेवन भी हिंसा है हेय हैं चार महाविकार जिन देशना की पात्रता, अष्ट मूलगुण की धारणा आचार से संस्कारित विचार परम रसायन हैं अहिंसा धर्म देवता के निमित्त की गई हिंसा भी हिंसा ही है पूजन के निमित्त भी हिंसा अकरणीय है हिंसक जीवों का घात भी हिंसा है दुखीः एवं सुखी जीवों का घात करना हिंसा है अंधविश्वास खतरनाक जिनमत रहस्यज्ञाता हिंसा में प्रवर्त नहीं होता मत करों किसी से घृणा सत्य का विनाश नहीं होता मत करो चुगली किसी की प्रिय वचनों में क्या दरिद्रता मत हरो किसी का धन मत हरो किसी का प्राण परधन पाषाणवत 159 164 169 174 179 184 189 194 200 205 210 215 219 224 229 233 238 243 248 252 257 262 269 274 279 284 288 293 298 302 306 310 Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.comPage Navigation
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