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प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग
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समची प्राण-शक्ति को जागृत करने का प्रयत्न कर रहे हैं। जैसे-जैसे श्वास को दीर्घ करते हैं, हम पूरी ऊर्जा को खींचते हैं और उसे देखते तो शक्ति के मूलस्रोत को जागृत कर लेते हैं, जिसके विस्फोट के द्वारा नई-नई शक्तियां उपलब्ध होती हैं। नई दिशाओं के उद्घाटन के लि श्वास-प्रेक्षा बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। समवृत्ति श्वास-प्रेक्षा
जैसे दीर्घ श्वास में श्वास की गति को परिवर्तित किया जाता है वैसे ही समवृत्ति श्वास में उसकी दिशा को बदला जाता है। एक नथने से श्वास भीतर लेकर दूसरे नथुने से बाहर निकाला जाता है तथा फिर उसी से भीतर लेकर पहले नथुने से बाहर निकाला जाता है। यह परिवर्तन संकल्प-शक्ति के द्वारा निष्पन्न हो सकता है। इस दौरान लगातार चित्त श्वास के साथ-साथ चलता है, उसकी प्रेक्षा करता है। यही 'समवृत्ति श्वास-प्रेक्षा' है।
समवृत्ति श्वास-प्रेक्षा में नाड़ी-संस्थान का शोधन होता है। ज्ञान-शक्ति विकसित होती है और अतीन्द्रिय-ज्ञान की संभावनाओं का द्वार खुलता है।
जैसे दीर्घश्वास-प्रेक्षा शक्ति-जागरण का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, वैसे ही समवृत्ति श्वास-प्रेक्षा भी शक्ति-जागरण का महत्त्वपूर्ण सूत्र है। मनःकायिक चिकित्सक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि समवृत्ति श्वास के माध्यम से
चेतना के विशिष्ट केन्द्रों को जागृत किया जा सकता है। दूर-बोध (Clairvoyance) की उपलब्धि इससे संभव हो सकती है। समवृत्ति श्वास का सतत अभ्यास अनेक उपलब्धियों में सहायक हो सकता है।
अभ्यास १. श्वास की प्रक्रिया को वैज्ञानिक दृष्टि से स्पष्ट कीजिए। २. प्राण, प्राणवायु और प्राणायाम को स्पष्ट कीजिए। ३. श्वास-प्रक्रिया का आध्यात्मिक दृष्टि से महत्त्व समझाइये। ४. श्वास-प्रेक्षा की निष्पत्तियों पर प्रकाश डालिए।
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