Book Title: Preksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Author(s): Mahapragya Acharya
Publisher: Jain Vishvabharati Vidyalay

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Page 199
________________ पक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग हम फेफडो का उपयोग कर सकते हैं। विधिवत् प्राणायाम की क्रिया में फेफडे अधिक शुद्ध वायु ग्रहण करते हैं। दीघ रेचन से अशुद्ध वाय निकल जाती है जिससे शरीर दीप्तमान और स्वस्थ बनता है। प्राणायाम ही किया से मस्तिष्क के स्नायु-मण्डल मजबूत एवं तेजस्वी होते हैं। मस्तिष्क की सुप्त शक्तियां प्राणायाम से जागृत होने लगती हैं। प्राणायाम से शरीर का प्रत्येक अंग स्वस्थ और सुन्दर बनता है। प्राणायाम से फेफड़ों पर सीधा असर होता है। फेफड़ों में छोटे-छोटे तन्तुओं के करोड़ों कुटीर हैं। इनका कार्य है, श्वास को भरना और उसे छोड़ना। जब श्वास अन्दर जाता है तो फेफड़े फैलते हैं और प्रश्वास होता है, तब वे सिकुड़ते हैं। सामान्यतः एक व्यक्ति एक मिनट में १६ से २२ तक श्वास-प्रश्वास करता है। यह श्वास-प्रश्वास ही शरीर की समस्त प्रक्रिया का आधार बनता है। इससे ही फेफड़े रक्त शुद्ध कर शरीर को रोग मुक्त रखते हैं। श्वास-प्रश्वास के समय हम जितने जागरूक या होश में होते हैं, श्वास का परिणाम उतना ही लाभदायक होता है। प्राण के प्रकार प्राण शक्ति है, उसे विभाजित नहीं किया जा सकता। जीवन-संचालन की दृष्टि से शक्ति के पांच विभाग किए जाते हैं। सम्पूर्ण शरीर में परिभ्रमण करती हुई यह शक्ति अलग-अलग स्थलों पर भिन्न-भिन्न कार्य करती है। योग के आचार्यों ने उनके नाम इस प्रकार बताए हैं प्राण-प्राण का मुख्य स्थल कण्ठ-नली है, जो श्वास-पटल के मध्य है। इसका मुख्य कार्य सक्रियता है, श्वास-प्रश्वास, स्वर यंत्र, भोजन-नलिका आदि से इसका सम्बन्ध है। अपानअपान का स्थान नाभि स्थल से नीचे है। अपान उत्सर्जन संस्थान, यकृत, आंत, पेट, हृदय आदि स्थानों का नियंत्रण करता है। उन्हें शक्ति एवं सक्रियता प्रदान करता है। समान-समान की स्थिति हृदय एवं नाभि के मध्य है। यह पाचन-संस्थान, क्लोम आदि के रस-स्राव को प्रेरित करता है। उदान-इससे स्वर-यंत्र के ऊपर के स्थान प्रभावित होते हैं। नेत्र, नासिका, कान, मस्तिष्क आदि सक्रिय होते हैं। ध्यान-यह समस्त शरीर के अवयवों को प्रभावित करता है। इससे समस्त अगों की संधिया, पेशिया एवं कोशिकाएं क्रियाशील बनती हैं। नाग, कुम, क्रिकर, देवदत्त तथा धनंजय पांच उपप्राणों की चर्चा भी याग Scanned by CamScanner

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