Book Title: Preksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Author(s): Mahapragya Acharya
Publisher: Jain Vishvabharati Vidyalay

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Page 198
________________ आसन, प्राणायाम और मुद्रा | १८७ प्राणायाम से रक्त का शोधन, जठराग्नि की वृद्धि, देह में स्फूर्ति, लचक और क्रांति बढ़ती है। प्राणायाम का शरीर और मन पर प्रभाव प्राण जीवन-यात्रा के लिए आवश्यक तत्त्व है। उसके बिना जीवन की यह यात्रा खण्डित हो जाती है। भोजन और पानी शरीर धारण करने के लिए अपेक्षित है, तो प्राण के बिना जीवन का अस्तित्व ही नहीं रह सकता। प्राण सतत-प्रवाही जीवन-शक्ति है। वह प्राणवायु से तेजस्वी बना रहता है। प्राणवायु श्वसन-क्रिया पूरक, रेचक और कुम्भक से सक्रिय होता है। प्राणायाम क्या है? प्राणायाम श्वसन क्रियाओं का सम्यग् नियमन और नियोजन है। प्राणायम श्वास-उच्छवास का सम्यग् अभ्यास है। प्राण का व्यवस्थित विस्तार और संयम प्राणायाम है। प्राणायाम से शरीर को शक्ति प्राप्त होती है, वहीं चैतन्य-जागरण की भूमिका का निर्माण होता है। प्राणायाम से रक्त एवं स्नायुमण्डल का शोधन होता है। शरीर-ताप एवं गति-शीलता के लिए हजारों-हजारों नसें रक्त को प्रवाहित करती हैं। रक्त में आए दोष प्राणायाम से विशुद्ध होते हैं और शक्ति का संचयन होता है। प्राणायाम केवल श्वास और निश्वास के नियमन का ही प्रयोग नहीं है, अपितु मन और इन्द्रियों को संयम में स्थापित कर चैतन्य के द्वार उद्घाटित करता है। प्राणायाम ऊपर से श्वास-उच्छवास से संचरण और निरोध की क्रिया दिखाई देता है, परन्तु प्राणायाम से इन्द्रिय और मन सभी प्रभावित होते हैं। शक्ति की क्रिया और प्रतिक्रिया से प्रतिक्षण रासायनिक परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन से पुराने तन्तु टूटते हैं, नये निर्मित होते हैं। इस टूट-फूट को व्यवस्थित करने के लिए प्राणायाम अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यद्यपि प्रत्येक प्राणी स्वभाविक क्रम से पूरक, कुम्भक और रेचक की क्रिया करता है, परन्तु कार्याधिक्य में यह क्रिया स्वाभाविक और विधिवत् नहीं होती। इससे रुग्णता में वृद्धि होती है। प्राणायाम होने से शरीर, मन, चैतन्य, स्वास्थ्य को उपलब्ध होते हैं। ___ साधारणतः श्वास की पूरक और रेचक क्रिया में फेफड़ों का आधे से कम हिस्सा उपयोग में आता है। प्राणायाम द्वारा पूर्ण पूरक और रेचक कर Scanned by CamScanner

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