Book Title: Preksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Author(s): Mahapragya Acharya
Publisher: Jain Vishvabharati Vidyalay

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Page 196
________________ आसन प्राणायाम और मुदा १८५ शरीर पर मल देना चाहिए। इससे त्वचा सुन्दर एवं चमकदार बनती है। अभ्यास के समय केवल नाक से श्वास लेना व निकालना चाहिए। • अभ्यास के बाद पूर्ण विश्राम आसन करना अत्यन्त आवश्यक है। अर्थात् पीठ के बल सीधा लेटकर शरीर के सभी आंगों को बिलकुल शिथिल कर देना चाहिए, मानो शरीर पर आपका कोई अधिकार न रहा हो। ५-७ मिनट तक इसी अवस्था में रहना आवश्यक है। यदि किसी कारण से लम्बे समय तक अभ्यास रुक गया हो तो वापस प्रथम दिन ही पूरा अभ्यास न कीजिये। थोड़े से शुरुआत की जानी चाहिए। पूरी मात्रा तक शीघ्र ही पहुंचा जा सकेगा। अभ्यास काल में रूखा व बासी आहार नहीं करना चाहिए। सुपाच्य एवं संतुलित भोजन करना चाहिए। • यह ध्यान में रखने की बात है कि अधिक काम, अति निद्रा या अनिद्रा से आसनों से होने वाले लाभों में कमी आती है। • यदि किसी विशेष आसन को एक ही स्थिति में अधिक समय तक रखने की इच्छा हो तो ऐसा किया जा सकता है। प्राणायाम : प्रयोजन प्राण ऐसी जीवन शक्ति है, जिससे प्राणी जीवित एवं सक्रिय रहते हैं। प्राणायाम जहां प्राण को नियमित और विस्तृत बनाता है, वहां दूसरी ओर प्राण की शक्ति को स्वाधीन बनाकर तेजस्वी भी बनाता है। श्वास प्राणायाम के द्वारा नाड़ियों और कोशिकाओं में प्राण प्रवाहित होता है। प्राणायाम केवल पूरक, रेचक अथवा कुम्भक नहीं है, बल्कि प्राणायाम प्राण को अनुशासित करने की प्रक्रिया है। प्राणायाम श्वास-क्रिया का सम्यग् नियमन और नियोजन है। प्राणायाम श्वास-प्रश्वास का सम्यग् अभ्यास है। प्राणायाम ही एकमात्र साधन है, जिससे व्यक्ति श्वास, मन और प्राण को वश में कर अपनी सुप्त चेतना को जागृत कर सकता है। स्वास्थ्य और प्राणायाम जहां स्वास्थ के लिए आसन उपयोगी है, वहां प्राणायाम उसमें नवजीवन संचार करने वाला है। प्राणायाम प्राण-शक्ति को विकसित और Scanned by CamScanner

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