Book Title: Preksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Author(s): Mahapragya Acharya
Publisher: Jain Vishvabharati Vidyalay

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Page 194
________________ आसन, प्राणायाम और मुद्रा १८३ ऊर्ध्व स्थान :-खड़े होकर किये जाने वाले आसन १. समपादासन ७. हस्तिसुण्डिकासन २ ताड़ासन ८. उड्डियान ३. इष्ट वन्दन ६. गरुड़ासन ४. त्रिकोणासन १०. नटराजासन ५. मध्यपादशिरासन ११. पाद हस्तासन ६. महावीरासन शिशिष्टि आसन १. शीर्षासन २. अर्ध शंखप्रक्षालन ३. मयूरासन ४. चक्रासन आवश्यक विधि निषेध १. जिन व्यक्तियों के कान बहते हों, नेत्र-ताराएं कमजोर हों एवं हृदय दुर्बल हों, उन्हें शीर्षासन नहीं करना चाहिए। २. उदरीय अवयवों से पीड़ा एवं तिल्ली में अभिवृद्धि वाले व्यक्तियों को भुजंगासन, शलभासन, धनुरासन नहीं करने चाहिए। ३. कोष्ठ-बद्धता (कब्ज) से पीड़ित व्यक्ति को योगमुद्रा पश्चिमोत्तानासन । ___ अधिक समय तक नहीं करना चाहिए। ४. हृदय दौर्बल्य में साधारणतया उड्डीयन और नौली क्रिया नहीं करनी चाहिए। ५. फेफड़े के दौर्बल्य में उज्जाई प्राणायाम और कुम्भक न किया जाए। ६. जिन व्यक्तियों में उच्च रक्तचाप रहता हो, उन्हें कठोर यौगिक अभ्यास नहीं करना चाहिए। सावधानियां • इन आसनों के अभ्यास यथासम्भव प्रातःकाल के समय करना चाहिए। इस समय पेट हल्का होता है। • कम उम्र के बालकों को कठिन आसन नहीं करने चाहिए। • बुखार या रुग्णावस्था में आसन प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए। Scanned by CamScanner

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