Book Title: Preksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Author(s): Mahapragya Acharya
Publisher: Jain Vishvabharati Vidyalay

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Page 193
________________ ध्यान सिद्धान्त और प्रयोग १८.२ शरीर को विधिवत् स्थिर बनाकर रखना स्थान आसन कहलाता है। यह कायगुप्ति है। कायगुप्ति शरीर का संयम है। यह तीनों प्रकार से हो सकता है। लेटकर, बैठकर और खड़े होकर-तीनों प्रकार से आसनों को सिद्ध किया जा सकता है। आसन की सिद्धि सरलता से प्राप्त की जा सके, इसलिए सर्वप्रथम शयन-स्थान से आसन का प्रारम्भ करना शरीर-विज्ञान की दृष्टि से उपयोगी है। बच्चा प्रारम्भ में लेटकर क्रिया करता है, फिर बैठता है और फिर खड़े होकर अपनी यात्रा करता है। अतः आसन का क्रम भी शयन, निषीदन और ऊर्ध्व-स्थिति क्रम में रखा गया है। शयन स्थान के अन्तर्गत आसनों का विवरण दिया गया है। लेटने पर जो-जो अंग प्रभावित होते हैं, उनको लक्षित कर शयन-आसनों का चुनाव किया गया है। शयन-स्थान पीठ के बल और पेट एवं सीने के बल लेटकर किये जाते हैं, वे निम्नानुसार हैं : शयन स्थान :-लेटकर किये जाने वाले आसन १. कायोत्सर्ग ८. सर्वांगासन २. उत्तान पादासन ६. हलासन ३. पवन मुक्तासन १०. मत्स्यासन ४. भुजंगासन ११. हृदयस्तंभासन ५. शलभासन १२. नौकासन ६. धनुरासन १३. वज्रासन, सुप्त वज्रासन ७. मकरासन निषोदन स्थान :-बैठकर किये जाने वाले आसन १. सुखासन ११. जानुशिरासन २. स्वस्तिकासन १२. पश्चिमोत्तानासन ३. पद्मासन १३. शशंकासन ४. योगमुद्रा १४. अर्धमत्स्येन्द्रासन ५. बद्ध पद्मासन १५. उष्ट्रासन ६. तुलासन १६. सिंहासन ७. उत्थित पद्मासन १७. ब्रह्मचर्यासन ८. उत्कटासन १८. सिद्धासन ६. गोदुहासन १६. हंसासन १०. गोमुखासन २०. कुक्कुटासन Scanned by CamScanner

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