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लेश्या-ध्यान
१४५ यही हमारा गन्तव्य है, यही हमारी मंजिल है। जैसे-जैसे चेतना का निकास होगा. जैसे-जैसे विकल्पों को कम करते हुए निर्विकल्प चेतना के अणों में जीने का अभ्यास होगा, वैसे-वैसे वह चेतना पुष्टि होगी और चेतना का वह अनन्त सागर एक दिन निस्तरंग और ऊर्मि-विहीन बन जाएगा। उस स्थिति में, उस परम सत्य का साक्षात्कार होगा जिसके लिए हजारों-हजारों लोग सदा उत्सुक रहते हैं।
अभ्यास १. व्यक्ति के मन पर रंगों के प्रभाव को समझाइये। २. रंग व्यक्ति की मनःकायिक बीमारियों पर क्या प्रभाव डालते हैं ? ३. आभामण्डल का तात्पर्य स्पष्ट करते हए आभामण्डल के रंग और रोगों
के सम्बन्ध को प्रकट कीजिए। ४. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लेश्या की व्याख्या कीजिए। ५. द्रव्य लेश्या और भावलेश्या का अन्तर स्पष्ट कीजिए और व्यक्ति की
वृत्तियों के संदर्भ में लेश्यातंत्र का महत्त्व बताइये। ६. लेश्या-ध्यान की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए। ७. व्यक्तित्व के परिवर्तन और रूपांतरण में लेश्या के शोधन की महत्ता पर
प्रकाश डालिए। ८. भावधारा का निर्मलीकरण क्या है और यह कैसे प्राप्त होता है ? ६. लेश्या-ध्यान की निष्पत्तियों को स्पष्ट कीजिए।
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