Book Title: Preksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Author(s): Mahapragya Acharya
Publisher: Jain Vishvabharati Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 175
________________ १६४ प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग व्याधि नहीं सताती, उपाधि नहीं सताती और आधि नहीं सताती। तीनों-व्याधि, उपाधि और आधि जब निःशेष हो जाती है, तब समाधि घटित होती है। व्याधि आती है, रोग होता है, तब आदमी की स्थिति भयंकर हो जाती है। मानसिक उलझन आदमी को इतना बेचैन बना देती है कि आदमी एक क्षण के लिए भी सुख की सांस नहीं ले सकता। आधि की कठिनाई व्याधि से अधिक है। आधि की स्थिति में आदमी पागल बन जाता है। सब कुछ साधन होने पर भी वह बहुत दुःखी बन जाता है। उपाधि की स्थिति आधि से भी जयादा भयंकर होती है। उपाधि का अर्थ है-कषाय। उसमें क्रोध जागता है, कपट उभरता है, लालच जागता है। इन सबके अस्तित्व में आदमी कुछ करता है जो उसे कभी नहीं करना चाहिए। व्याधि, आधि और उपाधि-तीनों खतरें हैं। इनकी अवस्थिति में समाधि नहीं आ सकती। समाधिस्थ होने के लिए तीनों से पार पाना जरूरी होता है। शरीर निरंतर बीमार रहता है, समाधि कैसी होगी? मन उलझनों से भरा रहता है, समाधि कैसे होगी? आदमी उपाधि से भरा रहता है, कषाय से भरा रहता है, समाधि कैसे उपलब्ध होगी? इन सबसे पार जाने पर ही समाधि का बिन्दु उपलब्ध होगा। प्रत्येक मनुष्य अपने मार्ग का चुनाव कर सकता है। मुझे कौन-सा जीवन जीना है? व्याधि, आधि और उपाधि का जीवन जीना है या समाधि का जीवन जीना है? आप पूछना चाहेंगे कि यह कोई चुनाव का प्रश्न है ? क्या कोई व्यक्ति आधि, व्याधि और उपाधि का जीवन जीना चाहेगा ? प्रश्न हो सकता है। सहज लगता है प्रश्न। किन्तु उत्तर भी जटिल नहीं है, बहुत सीधा है। आदमी चाहता है, तब बीमार होता है, आदमी चाहता है, तब मानसिक उलझनों में फंसता है और चाहता है, तब उपाधि से ग्रस्त होता है। अगर वह न चाहे, तो कभी बीमार नहीं हो सकता, कभी आधिग्रस्त नहीं हो सकता और कभी उपाधिग्रस्त नहीं हो सकता। यह सब चाह पर निर्भर होता है। कठिन है उस चाह को पकड़ना, उस चाह को समझना और देखना। हम देखना नहीं चाहते। हमारे भीतर एकाएक बीमार होने की चाह जागती है और हम बीमार हो जाते हैं। व्यक्ति अति काम, अति भोजन, अति क्रोध करता है, वह सारी बीमारी की चाह है। हम कैसे भेदरेखा खीचेंगे कि अति भोजन की चाह, अति स्वाद की या अति लोलुपता की चाह तो है और बीमारियों की चाह नहीं है। असंयम की चाह का मतलब है-बीमार होने की चाह। हम इन्हें Scanned by CamScanner

Loading...

Page Navigation
1 ... 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207