Book Title: Preksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Author(s): Mahapragya Acharya
Publisher: Jain Vishvabharati Vidyalay

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Page 183
________________ ___प्रक्षाध्यान : सिद्धान्त और प्रयोग १७२ का शरीर में उपयोग करते हैं और अधिकतम कार्बन डाइऑम्मा निकालते हैं। नाड़ी शोधन प्राणायाम के जरिये खून की नस-नाडियों के शोधन करके उसको स्वस्थ बनाया जाता है। इससे रक्त-चाप जैसी बीमारी या तो होती ही नहीं और अगर पहले से है तो ठीक हो जाती है। भस्तिका प्राणायाम के जरिये श्वसन तन्त्र के अवयवों को स्वस्थ रखा जाता । इससे कफ आदि के बिगड़ने से होने वाली बीमारियां नहीं हो पातीं। नाड़ी-तन्त्र रीढ़ की हड्डी में साइकिल के चेन की तरह अनेक हड्डियां मिली हई होती हैं जो इस हड्डी को लचीला बनाती हैं। (चित्र के लिए देखें पृष्ठ ८४ पर) इस हड्डी का लचीलापन स्वास्थ्य की निशानी है। आसन-प्राणायामों के माध्यम से रीढ़ की हड्डी को लम्बी उमर तक लचीला बनाकर रखा जा सकता है। रीढ़ की हड्डी के भीतर से योगशास्त्र के हिसाब से तीन मुख्य नाड़ियां गुजरती हैं : इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना। इन नाड़ियों को प्राणायाम के जरिये स्वस्थ और सक्रिय रखा जाता है। आसन-प्राणायाम के जरिये न्यूरोन्स को अधिकतम विश्राम दिया जा सकता है और उनकी उम्र बढ़ाई जा सकती है। इस तरह हमारी स्मरण शक्ति लम्बे समय तक न सिर्फ बनी रहती है बल्कि सबल भी बनी रहती है। चिन्तन और कल्पना के सही तरीके के कारण व्यक्ति की कार्य-कुशलता भी बढ़ जाती है। रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क सम्बन्धी अनेक बीमारियों से बचाव होता है। अन्तःस्रावी ग्रन्थि-तंत्र आसनों, यौगिक क्रियाओं, मुद्राओं और प्राणायाम का असर हमारे भावों पर पड़ता है। निषेधात्मक भावों की जगह विधेयात्मक भाव लेते हैं और इस तरह हमारा भावनात्मक स्वास्थ्य अच्छा होता है। दीर्घ-श्वासप्राणायाम के अभ्यास से तमाम निषेधात्मक भावों का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। दीर्घ-श्वास-प्रेक्षा से भावों का शमन होता है और आसनों से ग्रन्थि स्राव संतुलित होते हैं। (चित्र के लिए देखें पृष्ठ ८८ पर) इस तरह अन्तःस्रावी ग्रन्थियों पर आसनों, प्राणायाम आदि का असर स्पष्टतया दीखता है। आज का आयुर्विज्ञान बहुत ही उन्नत है। आयुर्विज्ञान ने आसनों का अनेक रोगों पर प्रयोग किया और पाया कि जहां अनेक दबाएं काम नही करतीं, वहां आसनों से फायदा होता है। इन्हीं प्रयोगों के आधार पर Scanned by CamScanner

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