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चैतन्य-केन्द्र- प्रेक्षा
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सम्यक् चिंतन-शक्ति को प्रबल बना सकता है और मौलिक मनोवृत्तियों के आवेगों को क्षीण कर सकता है।
हमारे शरीर में जितनी भी ग्रन्थियां हैं, वे सब अर्धचेतन मन हैं। यह मस्तिष्क को प्रभावित करता है, इसलिए मस्तिष्क से भी अधिक मूल्यवान् हैं। इन्हें हमें जागृत करना है। यदि इन्हें सही साधनों के द्वारा जागृत करते हैं, तो भय से मुक्ति मिलती है । भय से मुक्ति होने का अर्थ है - सारी बाधाओं से मुक्त होना । हम चैतन्य- केन्द्रों - ग्रन्थियों पर ध्यान करें। वे संतुलित होंगे। ज्यों-ज्यों हम उन केन्द्रों पर अधिक केन्द्रित होंगे, वे और संतुलित होते जाएंगे। उनके सन्तुलन से भय समाप्त होगा, आवेग समाप्त होंगे, सारी बाधाएं समाप्त होंगी, एक नया आयाम खुलेगा, नया आनन्द, नई स्फूर्ति, नया उल्लास प्राप्त होगा ।
मनोविज्ञान मानता है कि जो बात हमारे स्थूल मन तक पहुंचती है, वह कारगर नहीं होती। उससे व्यक्ति का परिवर्तन नहीं हो सकता, तरंगातीत अवस्था प्राप्त नहीं हो सकती। जब हम दर्शन-केन्द्र पर ध्यान करते हैं, तब हमारा विचार, हमारा संकल्प अन्तर्मन तक पहुंच जाता है। वह संकल्प लेश्या-तंत्र और अध्यवसाय तंत्र तक पहुंच जाता है। तरंगातीत अवस्था प्राप्त होती है, परिवर्तन घटित होने लगता है ।
निष्पत्तियां
चैतन्य- केन्द्र- प्रेक्षा के तीन परिणाम
चैतन्य- केन्द्र- प्रेक्षा के द्वारा ये तीन काम हो सकते हैं। चैतन्य- केन्द्र निर्मल हो सकते हैं, आनन्द- केन्द्र जो सोया पड़ा है, मूर्च्छित है, वह जाग सकता है और शक्ति का संस्थान जो अवरुद्ध हो रहा है, विघ्न और बाधाओं से प्रताड़ित हो रहा है, वह फिर सक्रिय हो सकता है, उसकी ज्योति प्रज्वलित हो सकती है।
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जब हम चैतन्य-केन्द्रों की प्रेक्षा करते हैं तब विद्युत् की धारा, प्राण की धारा वहां इतनी तेज हो जाती है कि जमा हुआ मैल साफ हो जाता है और वह विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र शुद्ध बन जाता है। निर्मलता आ जाती है और उस निर्मलता में से चैतन्य अभिव्यक्त हो सकता है, बाहर प्रकट हो सकता है। चैतन्य- केन्द्रों की प्रेक्षा से और अधिक प्राणधारा वहां इकट्ठी होती है और वे और अधिक निर्मल बन जाते हैं। चैतन्य- केन्द्र प्रेक्षा का महत्वपूर्ण परिणाम है - चैतन्य - केन्द्रों की निर्मलता ।
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