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प्रेक्षाध्यान : सिद्धान्त और प्रयोग
१०४ आयुर्वेद और एक्यूपंक्चर
भगवती सूत्र में बतलाया गया है-'सव्वेणं सव्वे।' हमारी चेतना असंख्य प्रदेश हैं। वे सब चैतन्य केन्द्र हैं। किन्तु कुछ स्थान ऐसे है . चैतन्य दूसरे स्थानों की अपेक्षा अधिक सघन होता है। विज्ञान की भी में हमारा पूरा शरीर विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र (Electromagnetic Field) है। किन्तु कुछ विशेष स्थानों में विद्युत्-चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता अन्य स्थानों की तुलना में अनेक गुनी अधिक होती है। हमारा मस्तिष्क, इन्टियां अन्तःस्रावी ग्रन्थियां ऐसे केन्द्र हैं। आयुर्वेद की भाषा में इन चैतन्य-केन्द्रों को मर्मस्थान कहा गया है। आयुर्वेदाचार्यों ने ऐसे १०७ मर्मस्थान बताए हैं। इन मर्मस्थानों में प्राण का केन्द्रीकरण होता है। ये रहस्य के स्थान हैं। यहां चेतना विशेष प्रकार से अभिव्यक्त होती है। प्रेक्षा-ध्यान के चैतन्य-केन्द्र
और आयुर्वेद के मर्मस्थानों में स्थान की दृष्टि से और महत्त्व की दृष्टि से अद्भुत समानता है।
चैतन्य-केन्द्र स्थान और भाग शांति केन्द्र .............. ज्ञान केन्द्र दर्शन केन्द्र ... ........ ज्योति केन्द्र अप्रमाद केन्द्र पाली.... चाक्षुष केन्द्र
'प्राण केन्द्र विशुद्धि केन्द्र ..... ..... ब्रह्म केन्द्र
....... ., आनन्द केन्द्र
तैजस केन्द्र .)
स्वास्थ्य केन्द्र
शक्ति केन्द्र
एक्यूपंक्चर के चिकित्सकों ने हमारे शरीर में ऐसे ७०० से अधिक केन्द्र खोज निकाले हैं, जिन्हें सूई द्वारा उत्तेजित करने पर अनेक प्रकार के रोगों की चिकित्सा की जाती है, अनेक असाध्य रोगों का उपचार किया जाता है। एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेसर में माना गया है-जो केन्द्र हमार
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