Book Title: Prayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi Author(s): Mokshratnashreejiji Publisher: Prachya Vidyapith ShajapurPage 15
________________ "मंगल आशीर्वाद" साहित्य समाज का दर्पण होता है। जिस प्रकार दर्पण में देखकर हम अपना संस्कार कर सकते हैं, ठीक उसी प्रकार साहित्य भी जनमानस को संस्कारित करने में सक्षम होता है। भौतिकता की चकाचौंध में भ्रमित पथिकों को सत्साहित्य आत्मविकास का मार्ग दिखाता है। साध्वी मोक्षरत्नाश्रीजी ने कठिन परिश्रम करके आचारदिनकर का अनुवाद कर और उस पर शोधग्रन्थ लिखकर जिनशासन का गौरव बढ़ाया है। _ विषय का तलस्पर्शी एवं सूक्ष्म ज्ञानार्जन करने के लिए लक्ष्य का निर्धारण करना आवश्यक होता है। अध्ययनशील बने रहने में श्रम एवं कठिनाइयों का सामना करना ही पड़ता है। श्रमणपर्याय तो श्रम से परिपूर्ण हैं। साध्वीजी ने अथक प्रयास करके जैन-साहित्य की सेवा का यह बहुत ही सराहनीय कार्य किया है। अन्तःकरण से हम उन्हें यही मंगल आशीर्वाद देते हैं कि भविष्य में इसी प्रकार संयम-साधना के साथ-साथ साहित्य-साधना करती रहें। विचक्षण पदरेणु मनोहरश्री मुक्तिप्रभाश्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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