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जे पज्जयेसु णिरदा जीवा परसमयिग त्ति णिहिट्ठा। आदसहावम्मि ठिदा ते सगसमया मुणेदव्वा।। .
जो
पज्जयेसु णिरदा
जीवा
परसमयिग त्ति
(ज) 1/2 सवि (पज्जाय) 7/2
पर्यायों में (णिरद) 1/2 वि तल्लीन (जीव) 1/2
जीव । [(परसमयिगा)+ (इति)] [(पर) वि- (समयिग)1/2 वि] इतर दृष्टिवाले इति (अ) = ही (णिद्दिठ्ठ) भूकृ 1/2 अनि कहे गये . [(आद)-(सहाव) 7/1] आत्मस्वभाव में (ठिद) भूकृ 1/2 अनि स्थित (त) 1/2 सवि
वे (सगसमय) 1/2 वि स्व दृष्टिवाले (मुण) विधिक 1/2 समझे जाने चाहिये
णिट्ठिा
आदसहावम्मि ठिदा
सगसमया मुणेदव्वा
अन्वय- जे जीवा पज्जयेसु णिरदा परसमयिग त्ति णिहिट्ठा आदसहावम्मि ठिदा ते सगसमया मुणेदव्वा।
__ अर्थ- जो जीव (व्यक्ति) पर्यायों में तल्लीन (होते हैं) (वे) इतर (जिन भिन्न) दृष्टिवाले ही कहे गये (हैं) (और) (जो) (जीव) आत्मस्वभाव में स्थित (होते हैं) वे स्व (जिन) दृष्टिवाले समझे जाने चाहिये।
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प्रवचनसार (खण्ड-2)
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