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परिणमदि सयं दव्वं गुणदो य गुणंतरं सदविसिटुं। तम्हा गुणपज्जाया भणिया पुण दव्वमेव त्ति।
परिणमदि सयं
प्राप्त करता है स्वयं
दव्वं
द्रव्य
गुणदो
गुण से
गुणंतरं
सदविसिटुं तम्हा गुणपज्जाया भणिया
(परिणम) व 3/1 सक अव्यय (दव्व) 1/1 (गुणदो) अव्यय पंचमी अर्थक ‘दो' प्रत्यय
अव्यय (गुणंतर) 2/1 (सदविसिट्ठ) भूकृ 1/1अनि अव्यय [(गुण)-(पज्जाय) 1/2] (भण-भणिय-भणिया) भूकृ 1/2 अव्यय [(दव्वं)+ (एव)+ (इति)] दव्वं (दव्व) 1/1. एव (अ) = ही इति (अ) = इस प्रकार
. और
अन्य गुण को अस्तित्व लक्षणयुक्त इसलिये गुण की पर्यायें . कही गई
पुण
तो भी
दव्वमेव त्ति
द्रव्य
इस प्रकार
अन्वय- सदविसिटुं दव्वं सयं गुणदो य गुणंतरं परिणमदि तम्हा गुणपज्जाया भणिया पुण दव्वमेव त्ति।
अर्थ- अस्तित्व लक्षणयुक्त द्रव्य स्वयं (ही) (एक) गुण से अन्य गुण को प्राप्त करता है, इसलिये गुण की पर्यायें कही गई हैं) तो भी (प्राप्त करनेवाली) (वह) (वस्तु) द्रव्य ही (है)। इस प्रकार (वर्णित है)।
1.
'अन्य' अर्थ में 'अंतर' समस्त पद का उत्तर पद रहता है और यह नपुंसकलिंग होता है।
(26)
प्रवचनसार (खण्ड-2)
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