Book Title: Pravachansara Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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8.
ण भवो भंगविहीणो भंगो वा णत्थि संभवविहीणो। उप्पादो वि य भंगो ण विणा धोव्वेण अत्थेण।।
उप्पादट्ठिदिभंगा विज्जंते पज्जएसु पज्जाया। दव्वं हि संति णियदं तम्हा दव्वं हवदि सव्वं ।।
10. समवेदं खलु दव्वं संभवठिदिणाससण्णिदतुहिं।
एक्कम्मि चेव समये तम्हा दव्वं खु तत्तिदयं ।।
11. पाडुब्भवदि य अण्णो पज्जाओ पज्जओ वयदि अण्णो।
दव्वस्स तं पि दव्वं णेव पणटुं ण उप्पण्णं।।
12. परिणमदि सयं दव्वं गुणदो य गुणंतरं सदविसिटुं।
तम्हा गुणपज्जाया भणिया पुण दव्वमेव त्ति।
.
13. ण हवदि जदि सहव्वं असद्धवं हवदि तं कहं दव्वं।
हवदि पुणो अण्णं वा तम्हा दव्वं सयं सत्ता।।
14. पविभत्तपदेसत्तं पुधत्तमिदि सासणं हि वीरस्स।
अण्णत्तमतब्भावो ण तब्भवं होदि कधमेगं।।
15. सद्दव्वं सच्च गुणो सच्चेव य पज्जओ त्ति वित्थारो।
जो खलु तस्स अभावो सो तदभावो अतब्भावो।
प्रवचनसार (खण्ड-2)
(125)
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