Book Title: Pravachansara Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 170
________________ उपयोगमय अकेला उवजोगमअ एक्क एवंविह ओगाढ ऐसा गाढ़ा ओरालि कत्तु गहरा औदारिक कर्ता करनेवाला करनेवाला 30, 70, 94 34, 68, 92 कत्ति 68 ग्रस्त कसायिद कारयिदु गुणप्पग गुणव गुणिद: करानेवाला गुणात्मक गुणयुक्त अंशवाला प्रगाढ़ घातिया अनेक प्रकार का घण घादि चित्त 105 4, 40 108 जाणग ज्ञायक जीवप्पग जीव से संबंधित चेतनजीव से निर्मित जीवमय आत्मा से युक्त जोग . योग्य झादु . ध्यानकरनेवाला ध्यानलगानेवाला प्रवचनसार (खण्ड-2) 104 (163) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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