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36. पोग्गलजीवणिबद्धो धम्माधम्मत्थिकायकालड्डो।
वट्टदि आगासे जो लोगो सो सव्वकाले दु।।
पोग्गलजीवणिबद्धो [(पोग्गल)-(जीव)-(णिबद्ध) पुद्गल और जीव से
भूकृ 1/1 अनि] युक्त धम्माधम्मत्थिकाय- [(धम्म)+(अधम्म)+(अस्थिकाय)+ कालड्डो (कालड्डो)]
[(धम्म)-(अधम्म)- धर्मास्तिकाय, (अत्थिकाय)
अधर्मास्तिकाय और (कालड्ड) 1/1 वि] काल-सहित वट्टदि (वट्ट) व 3/1 अक होता है आगासे (आगास) 7/1
आकाश में (ज) 1/1 सवि लोगो (लोग) 1/1
लोक (त) 1/1 सवि
वह सव्वकाले [(सव्व) सवि-(काल) 7/1] सर्वकाल में
अव्यय .
जो
ओ
सो .
दु
अन्वय- जो आगासे धम्माधम्मत्थिकायकालड्ढो पोग्गलजीवणिबद्धो वट्टदि सो दु सव्वकाले लोगो।
अर्थ- जो (क्षेत्र) आकाश (द्रव्य) में धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और काल-सहित पुद्गल और जीव से युक्त है वह ही सर्वकाल (अतीत, अनागत और वर्तमान) में 'लोक' (कहा जाता है)।
प्रवचनसार (खण्ड-2)
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