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16. जं दव्वं तं ण गणो जो वि गणो सोण तच्चमत्थादो।
एसो हि अतब्भावो णेव अभावो त्ति णिद्दिटो।।
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तच्चमत्थादो
(ज) 1/1 सवि (दव्व) 1/1 (त) 1/1 सवि अव्यय (गुण) 1/1 (ज) 1/1 सवि अव्यय (गुण) 1/1 (त) 1/1 सवि अव्यय [(तच्चं)+(अत्थादो)] तच्चं (तच्च) 1/1 अत्थादो (अत्थ)• 5/1 (एत) 1/1 सवि अव्यय (अतब्भाव) 1/1 अव्यय [(अभावो)+ (इति)] अभावो (अभाव) 1/1 इति (अ) = निश्चय ही (णिद्दिठ्ठ) भूकृ 1/1 अनि
द्रव्य (मूल प्रकृति) . वस्तुतः यह
एसो
तादात्म्य का अभाव
अतब्भावो णेव अभावो त्ति
नहीं
अभाव निश्चय ही कहा गया
णिद्दिट्ठो
अन्वय- अत्थादो जं दव्वं तं गुणो ण वि जो गुणो सो तच्चं ण एसो हि अतब्भावो अभावो त्ति णेव णिहिट्ठो।
___ अर्थ- वस्तुतः जो द्रव्य (है) वह गुण नहीं (है), और जो गुण (है) वह द्रव्य नहीं (है)। यह ही तादात्मय का अभाव (है) (किन्तु) (यह) निश्चय ही अभाव नहीं कहा गया (है)।
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'अत्थ' का पंचमी में प्रयोग अव्यय के रूप में होता है।
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प्रवचनसार (खण्ड-2)
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