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6. दव्वं सहावसिद्धं सदिति जिणा तच्चदो समक्खादा।
सिद्धं तध आगमदो णेच्छदि जो सो हि परसमओ।।
दव्वं सहावसिद्धं सदिति जिणा तच्चदो
समक्खादा
सिद्धं
तध आगमदो
(दव्व) 1/1
द्रव्य . [(सहाव)-(सिद्ध) 1/1वि] स्वभाव से निर्मित (सदिति) 1/1 अनि अस्तित्व ही (जिण) 1/2
जिनेन्द्रदेवों ने (तच्चदो) अव्यय
यथार्थरूप से पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय (समक्खाद) भूकृ 1/2 अनि . कहा (सिद्ध) 1/1 वि
सिद्ध अव्यय
इस तरह (आगमदो) अव्यय आगमपूर्वक पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय [(ण)+ (इच्छदि)] ण (अ) = नहीं इच्छदि (इच्छ) व 3/1 सक मानता है (ज) 1/1 सवि (त) 1/1 सवि
वह अव्यय
निश्चय ही (परसमअ) 1/1 वि इतर दृष्टिवाला
णेच्छदि
नहीं
ग
परसमओ
अन्वय- दव्वं सहावसिद्धं सदिति जिणा तच्चदो समक्खादा तध आगमदो सिद्धं जो णेच्छदि सो हि परसमओ।
अर्थ- द्रव्य स्वभाव से निर्मित अस्तित्व' ही (है) जिनेन्द्रदेवों (तीर्थंकरों) ने यथार्थरूप से (ऐसा) कहा (है)। इसतरह (वह कथन) आगमपूर्वक (भी) सिद्ध (हो जाता है)। जो (इसे) नहीं मानता है वह निश्चय ही इतर (जिनभिन्न) दृष्टिवाला (है)।
1.
यहाँ भूतकालिक कृदन्त का कर्तृवाच्य में प्रयोग हुआ है।
(20)
प्रवचनसार (खण्ड-2)
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