Book Title: Pramannay Tattvalolankar
Author(s): Vadidevsuri, 
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ TO CG PU ॥श्रीः ॥ श्रीवादिदेवसूरिविरचित प्रमाणनयतत्त्वालो कालङ्कारः। प्रथमः परिच्छेदः । रागद्वेषविजेतारं ज्ञातारं विश्ववस्तुनः । शक्रपूज्यं गिरामीशंतीर्थेशं स्मृतिमानये॥१॥ प्रमाणनयतत्वव्यवस्थापनार्थमिदमुपक्रम्यते१॥ स्वपरव्यवसायिज्ञानं प्रमाणम् ॥२॥ अभिमतानभिमतवस्तुस्वीकारतिरस्कारक्षमं हि प्रमाणमतोज्ञानमेवेदम् ॥ ३ ॥ नवैसनिकर्षादेरज्ञानस्य प्रामाण्यमुपपन्नंत -

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68