Book Title: Pramannay Tattvalolankar
Author(s): Vadidevsuri, 
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कारः। ११ धानःकः खलु न पक्षप्रयोगमङ्गीकुरुते॥२३॥ प्रत्यक्षपरिच्छिन्नार्थाभिधायिवचनं परार्थ प्रत्यक्षं परप्रत्यक्षहेतुतात् ॥२४॥ यथा पश्य पुरः स्फुरत्किरणमणिखण्डमण्डि. ताभरणभारिणीं जिनपतिप्रतिमामिति२५॥ पक्षहेतुवचनलक्षगमवयवद्वयमेव परप्रतिपत्तेरङ्गं न दृष्टान्तादिवचनम् ॥२६॥ हेतुप्रयोगस्तथापपत्त्यन्यथानुपपत्तिभ्यां द्विप्रकारः ॥२७॥ सत्येव साध्ये हेतोरुपपत्तिस्तथोपपत्तिः। असति साध्य हेतोरनुपपत्तिवान्यथानुपपत्तिः२८ यथा कृशानुमानयंपाकप्रदेशः सत्येव कृशानुमत्त्वे धूमवत्वस्यापपत्तेरसत्यनुपपत्तेति२९

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68