Book Title: Pramannay Tattvalolankar
Author(s): Vadidevsuri, 
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ १० प्रमागनयतत्त्वालोकालङ्कारः । नहि यत्र यत्र धूमस्तत्र तत्र चित्रभानोरिख धरित्रीधरस्याप्यनुवृत्तिरस्ति ॥१७॥ आनुमानिकपतिपत्त्यासरापेक्षया तु पक्षापरपर्यायस्तद्विशिष्टः प्रसिद्धोधर्मी ॥१८॥ धमिणः प्रसिद्धिः क्वचिद्रिकल्पतः कुत्रवित्प्रमाणत:क्यापि विकल्पप्रमाणाभ्याम् १९ यथा समस्तिसमस्तवस्तुवेदी क्षितिधरकन्धरेयंधूमधजवती धनिः परिणतिमानिति२०॥ पक्षहेतुवचनात्मकं परार्थमनुमानमुपचारात् ॥२१॥ साध्यस्य प्रतिनियतमिसंबन्धिता प्रसिद्धये हेतोरुपसंहारवचनवत्पक्षप्रयोगोप्यवश्यमाश्रयितव्यः ॥२२॥ त्रिविधं साधनमभिधायैव तत्समर्थनं विद

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68