Book Title: Pramannay Tattvalolankar
Author(s): Vadidevsuri,
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala
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२० प्रमाणनयतत्त्वालाकालङ्कारः। विरुद्धोत्तरचरोपलब्धियथा नोदगान् मुहू.
तत्पूर्व मृगशिरः पूर्वफल्गुन्युदयात् ॥८७॥ विरुद्वसहचरोपलब्धियथा नास्त्यस्य मिथ्या ज्ञानं सम्यग्दर्शनात् ॥ ८॥ अनुपलब्धेरपिद्वैरूप्यमविरुद्धानुपलब्धिर्विरुद्धानुपलब्धिश्च ॥८९॥ तत्राविरुद्धानुपलब्धिःप्रतिषेधावबोधे सप्तप्रकारा ॥९॥ प्रतिषेध्येनाविरुद्धानां सभा व्यापककार्यकारणपूर्वचरोत्तरचरसहचगणामनुपलब्धि
रिति ॥९१॥
स्वभावानुपलब्धिर्यथा नास्त्यत्र भूतले कुम्भ उपलब्धिलक्षणप्राप्तस्य तत्समावस्यानुपलम्भात् ॥ ९२॥

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