Book Title: Pramannay Tattvalolankar
Author(s): Vadidevsuri,
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala
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१४
प्रमाणत्रयतत्त्वालोकालङ्कारः ।
यथा यत्र धूमस्तत्र वह्निर्यथा महान सः ॥ ४३ ॥ यत्र तु साध्याभावे सावनस्यावश्यमभावः प्रदर्श्यत सवैधर्म्यदृष्टान्तः ॥ ४४॥ यथाग्न्यभावे नभवत्येवधूमो यथा जलाशये ४५ हेतोःसाध्यधर्मिण्युपसंहरणमुपनयः ॥ ४६ ॥ यथा धूमश्चात्र प्रदेशे ॥ ४७॥ साध्यधर्मस्य पुनर्निगमनम् ॥ ४८ ॥
यथा तस्मादग्निरत्र ॥ ४९॥
एते पक्षप्रयोगादयः पञ्चाप्यवयवसंज्ञया कीयन्ते ॥ ५० ॥
उक्तलक्षणो हेतुर्द्विप्रकारः उपलब्ध्यनुपलधियां भिद्यमानत्वात् ॥ ५१ ॥ उपलब्धिर्विधिनिषेधयोः सिद्धिनिबन्धनमनुपलब्धिश्च ॥ ५२ ॥

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