Book Title: Pramannay Tattvalolankar
Author(s): Vadidevsuri, 
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala

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Page 13
________________ प्रमाणनयतत्त्वालाकालङ्कारः। ३ यथागच्छतस्तृणस्पर्शज्ञानम् ॥१४॥ ज्ञानादन्योऽयः परः ॥१५॥ स्वस्य व्यवसायःस्वाभिमुख्यन प्रकाशनं बाह्यस्येवतदाभिमुख्यन करिकलभकमहमास्मनाजानामीति ॥१६॥ कः खलुज्ञानस्यालम्बनं बाह्यं प्रतिभातमभिमन्यमानस्तदपितत्प्रकारं नाभिमन्येत मिहिरालोकवत् ॥१७॥ ज्ञानस्य प्रमेयाव्यभिचारित्वं प्रामाण्यम् १८॥ तदितरत्त्वप्रामाण्यम् ॥ १९॥ तदुभयमुत्पत्तो परतएव ज्ञप्तौ तु स्वतः परतश्चेति ॥२०॥ श्रीदेवाचार्यनिर्मिते प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कारे प्रमाणस्वरूपनिर्णयो नाम प्रथमः परिच्छेदः ॥१॥ -

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