Book Title: Prakrutanand
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 68
________________ प्राकृतानन्द हुवाहिमि हुवहिमि होस्सं हुवेस्सं हुवस्सं। भविष्यामः = होहिस्सा हुवेहिस्सा हुविहिस्सा हुवाहिस्सा हुवहिस्सा होहित्था हुवेहित्था हुविहित्था हुवाहित्था हुवाहित्था होस्सामोहुवेस्सामो हुविस्सामो हुवस्सामो होहामो हुवेहामो हुविहामो हुवाहामो हुवहामो होहिमो हुवेहिमो हुविहिमो हुवाहिमो हुवहिमो होस्सामु हुवेस्सामु हुविस्सामु हुवस्सामु होहामु हुवेहामु हुविहामु हुवाहामु हुवहामु होहिमु हुवेहिमु हुविहिमु हुवाहिमु हुवहिमु होस्साम हुवेस्साम हुविस्साम हुवस्साम होहाम हुवेहाम हुविहाम हुवाहाम हुवहाम होहिम हुवेहिम हुविहिम हुवाहिम हुवहिम । इति लट् । ___अथ लोट- भवतु = होउ हुवेउ हुवउ। भवन्तु = होंतु हुवेन्तु हुवन्तु। भव= होसु हुवेसु हुवसु। भवत=होह हुवेह हुवह । भवानि = होम हुवेमु हुवामु हुवमु । भवाम= होमो हुवेमो हुवामो हुविमो हुवमो। इति लोट् । लोट्वद् लङ्-लिङाशीर्लिङः। अथ लङ्-अभूत् हुवीअ हुविअं होहीअ, एवं पुरुष-वचनेषु । ल लट्वत् । प्रादेर्भवः ॥ ३३८॥ प्रादेः परस्य भुवो भव इत्यादेशः स्यात् । प्रभवति =पभवइ पभवए पभवेइ पभवेए । उद्भवति उन्भवइ । प्रतिभवइ पडिभवइ, 'प्रतिसर' (३३) इति तस्य डः। खाह भक्षणे। खादि-धाव्योः खा-धौ ॥ ३३९ ॥ अनयोः खा धा इत्येतो क्रमेण स्यातां वर्तमाने भविष्यति विध्यादीनामेकवचनेषु च । खादति खाइ । चखाद खाहीअ । खादिता खाहिइ । खादिष्यति खाहिइ । खादतु खाउ । एवं लङ्-लिङाशीर्लिङः । अखादीत् खादीअं खादीअ । लङ् लड्वत्। क्षियो झिजः॥ ३४० ॥ 'क्षि क्षये अस्य झिज्ज इत्यादेशः स्यात् । क्षयति झिज्जइ झिजए । छिन्न-भिजावप्येके । ब्रज गतौ । चो व्रज-नृत्योः ॥ ३४१॥ अनयोरन्तस्य चः स्यात् । व्रजति वच्चइ वच्चेइ वचए । ब्रजिता वच्चहिइ वच्चहिए। वेष्ट वेष्टने । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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