Book Title: Prakrutanand
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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[ ५६ संस्कृतरूपम् सूत्राणि
प्राकृतशब्दः
प्राकृतशब्द:
संस्कृतरूपम् सूत्राणि
छम्मुहो छायाग्गामो छवो छाहा छाहागामो छाही छिदइ छोरं
षण्मुखः छायाग्रामः १३१ शविक: छाया १६८, १७४ छायाग्रामः १३१ छाया छिनत्ति
३६३ क्षीरं
२०४ क्षुब्धः । ११८
जिणिज्जइ जिण्णीय जिण्णीअइ जिम्वर जिस्सा
जीयते जिगाय जीयते जीयते यस्याः जा
४०४ ३५० ४०४ ४०४ २८५ १७५ २८५ २८५
१७४
या
यस्याः
छुद्धो
ज्या
छुणा
भुणा
१६६
यस्याः
ज
२८५
जप्रमाणा जप्रमाणी जप्रमाणो जउणा जढरं जण्णो
Morror
२८५ १६५
जी जी जीमा जीमा जीइ जीए जीसे जीहा जुउच्छा जुगुच्छा जुज्झइ
यजमाना यजमाना यजमानः यमुना जठरं यज्ञः जह्न: जायते जन्म यशः युधिष्ठिरः
यस्याः यस्याः यस्याः जिह्वा जुगुप्सा जुगुप्सा युध्यते युवा
१६६ १२७
१६६ ३८३
२४१
जुवा, जुवाणो जो
२४६
जण जम्मो
३८१ २४२ २८२
जोग्गो जोवणं
जसो
१६६
जहिटिलो
२८७ ३४७
0
या
0
जा
४०२
जाउ
२८५
२८७
४०२ ३४६ ३४६ ३४६
२८५
योग्यः यौवनम् यत् जल्पति जल्पयति जल्पयति जम्भते जम्भिता जम्भिता जम्भते जम्भते जम्भते जम्भिता जम्भिता
झ ध्यायतु ध्यायति
जंप जंपावेइ जंपेइ जंभाप्रद जंभाग्रहिइ जंभाअहिए जंभाए जंभाएइ जंभाएए जभाएहिए जंभाएहिइ
याः यस्याः यानि यस्याः याः जानाति ज्ञायते ज्ञायते जामाता जामातार: जयति
जाइ जाई जाए जाम्रो जाण जाणिज्ज जाणीग्रह जामाया जामाप्रारो जिण्ण
२८५ ३९८
४०८
३४६ ३४६ ३४६ ३४६
४०८ १५५ १५५ ३५०
झाउ झाइ
३६१ ३६१
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