Book Title: Prakrit Vyakaran Abhyas Uttar Pustak
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 26
________________ समणाउसो = समण+आउसो (हे आयुष्यमान श्रमण!) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। अगुत्तिदिए = अ+गुत्त+इंदिए (इन्द्रियों का गोपन नहीं करनेवाला) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। दिसावलोयं = दिसा+अवलोयं (सब दिशाओं में अवलोकन) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) आ+अ = आ। पाठ 14-चिट्ठी तेणिंदभूदिणा = तेण+इंदभूदिणा (उस इन्द्रभूति के द्वारा) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। बारहंगाणं = बारह+अंगाणं (बारह अंगों की) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। गंथाणमेक्केण = गंथाणं+एक्केण (ग्रंथों की एक) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। जादेत्ति = जादा+इति (इस प्रकार हुई) नियम 2- असमान स्वर सन्धिः (क) आ+इ = ए। दुविहमवि = दुविहं+अवि (दोनों प्रकार का भी) . . . नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। नियम 7 - अव्यय-सन्धिः (i) किसी भी पद के बाद आये हुए अपि/अवि अव्यय के 'अ' का विकल्प से लोप होता है। · परिवाडिमस्सिदूण = परिवाडिं+अस्सिदूण (परिपाटी को ग्रहण करके) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक 17 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org


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