Book Title: Prakrit Vyakaran Abhyas Uttar Pustak
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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नियम 8 व 12- अन्तरेण व विणा के योग में द्वितीया विभक्ति होती
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णइं (2/1) णयरं (2/1) य अन्तरा वणं (1/1) अत्थि। नियम 8- अन्तरा (बीच में, मध्य में) के योग में द्वितीया विभक्ति होती है। बालअं (2/1) पडि तुम/तुं/तुह (1/1) सनेहं (2/1) करसि/करसे/
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करेसि।
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नियम 9- पडि (की ओर, की तरफ) के योग में द्वितीया विभक्ति होती है। सो (1/1) बारह वरिसाइं/वरिसाइँ/वरिसाणि (2/2) वसइ/वसेइ/ वसए/आदि। नियम 10- समयवाची शब्दों में द्वितीया विभक्ति होती है। अहं/हं/अम्मि (1/1) कोसं (2/1) चलमि/चलामि/चलेमि। नियम 10- मार्गवाची शब्दों में द्वितीया विभक्ति होती है। णई (1/1) णयरत्तो/णयराओ/आदि (5/1) दूरं (2/1) अस्थि। नियम 11- दूर (नपुंसकलिंग) शब्द द्वितीया विभक्ति में रखा जाता है। सायरस्सं (6/1) अंतियं (2/1) लंका अत्थि। नियम 11- अंतिय (नपुंसकलिंग) शब्द द्वितीया विभक्ति में रखा जाता
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सो (1/1) दुहं (2/1) जीवइ/जीवेइ/जीवए। . . नियम 13- कभी-कभी संज्ञा शब्द की द्वितीया विभक्ति का एकवचन क्रियाविशेषण के रूप में प्रयुक्त होता है।
... ... तृतीया विभक्तिः करण कारक
अभ्यास 2 1. सो (1/1) जलेण/जलेणं (3/1) करा (2/2) पच्छालइ/पच्छालेइ/
पच्छालए। नियम 1- कार्य की सिद्धि में जो कर्ता के लिए अत्यन्त सहायक होता है वह करण कहा जाता है। उसे तृतीया विभक्ति में रखा जाता है।
प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक
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