Book Title: Prakrit Vyakaran Abhyas Uttar Pustak
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक डॉ. कमलचन्द सोगाणी निदेशक जैनविद्या संस्थान-अपभ्रंश साहित्य अकादमी द्वारा रचित प्राकृत-व्याकरण के अभ्यासों की स्वयं जाँच हेतु रचित उत्तर पुस्तक की लेखिका श्रीमती शकुन्तला जैन णाणुज्जीवा जावा जैनविद्या संस्थान श्री महावीरजी प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी राजस्थान For Personal & Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक डॉ. कमलचन्द सोगाणी निदेशक जैनविद्या संस्थान-अपभ्रंश साहित्य अकादमी द्वारा रचित प्राकृत-व्याकरण के अभ्यासों की स्वयं जाँच हेतु रचित उत्तर पुस्तक की लेखिका श्रीमती शकुन्तला जैन सहायक निदेशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर माणु जीबीजाबा जैनविद्या संस्थान श्री महावीरजी प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी राजस्थान For Personal & Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी श्री महावीरजी - 322 220 (राजस्थान) दूरभाष - 07469-224323 प्राप्ति-स्थान 1. साहित्य विक्रय केन्द्र, श्री महावीरजी 2. साहित्य विक्रय केन्द्र दिगम्बर जैन नसियाँ भट्टारकजी सवाई रामसिंह रोड, जयपुर - 302 004 दूरभाष – 0141-2385247 प्रथम संस्करण 2012 सर्वाधिकार प्रकाशकाधीन मूल्य - 300 रुपये ISBN No. 978-81-921276-6-8 पृष्ठ संयोजन फ्रेण्ड्स कम्प्यूटर्स जौहरी बाजार, जयपुर - 302003 दूरभाष – 0141-2562288 मुद्रक जयपुर प्रिण्टर्स प्रा. लि. एम.आई. रोड, जयपुर - 302 001 For Personal & Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका प्रकाशकीय प्राकृत-व्याकरण विषय पृष्ठ संख्या सन्धि प्रयोग के उदाहरण समास प्रयोग के उदाहरण कारक अभ्यास 1 अभ्यास 2 अभ्यास 3 अभ्यास 4 अभ्यास 5 अभ्यास 6 अव्यय अभ्यास 7 For Personal & Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय 'प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक' अध्ययनार्थियों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है। वैदिककाल से ही प्राकृत भाषा भारतीय आर्य भाषा परिवार की एक सुसमृद्ध लोक भाषा रही है। यह सर्वविदित है कि तीर्थंकर महावीर ने जनभाषा प्राकृत में उपदेश देकर सामान्यजनों के विकास का मार्ग प्रशस्त किया है। भाषा संप्रेषण का सबल माध्यम होती है। उसका जीवन से घनिष्ठ संबंध होता है। जीवन के उच्चतम मूल्यों को जनभाषा में प्रस्तुत करना प्रजातान्त्रिक दृष्टि है। आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के अध्ययन के लिए प्राकृत का अध्ययन अपरिहार्य है। यह एक सार्वजनीन सिद्धान्त है कि किसी भी भाषा का ज्ञान प्राप्त करना रचना और अनुवाद की शिक्षा के बिना कठिन है। प्राकृतअपभ्रंश को सीखने-समझने के लिए ही दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी द्वारा संचालित 'जैनविद्या संस्थान' के अन्तर्गत अपभ्रंश साहित्य अकादमी की स्थापना सन् 1988 में की गई। वर्तमान में प्राकृत भाषा के अध्ययन के लिए पत्राचार के माध्यम से प्राकृत सर्टिफिकेट व प्राकृत डिप्लामो पाठ्यक्रम संचालित हैं, ये दोनों पाठ्यक्रम राजस्थान विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त हैं। प्राकृत भाषा को सीखने-समझने को ध्यान में रखकर ही प्राकृत रचना सौरभ', 'प्राकृत अभ्यास सौरभ', 'प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ', 'प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ', 'प्राकृत-व्याकरण' 'प्राकृत अभ्यास उत्तर पुस्तक' आदि पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है। 'प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक' इसी क्रम का प्रकाशन है। For Personal & Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिक्षक के अभाव में अध्ययनार्थी 'प्राकृत - व्याकरण' के अभ्यासों को हल करके जाँचने में समर्थ नहीं हो सकते हैं। अतः इस कठिनाई को दूर करने के लिए 'प्राकृत - व्याकरण' के अभ्यासों को हल करके 'प्राकृतव्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक' की रचना की गई है, जिससे अध्ययनार्थी अभ्यासों को स्वयं जाँच सके। आशा है 'प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर. पुस्तक' प्राकृत अध्ययनार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी । . श्रीमती शकुन्तला जैन ने बड़े परिश्रम से 'प्राकृत - व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक' को तैयार किया है जिससे अध्ययनार्थी प्राकृत भाषा को सीखने में अनवरत उत्साह बनाये रख सकेंगे। अतः वे हमारी बधाई की पात्र हैं। पुस्तक प्रकाशन के लिए अपभ्रंश साहित्य अकादमी के विद्वान एवं पृष्ठ संयोजन के लिए फ्रेण्ड्स कम्प्यूटर्स के हम आभारी हैं । मुद्रण के लिए जयपुर प्रिण्टर्स प्रा. लि. धन्यवादाह है। जस्टिस नगेन्द्र कुमार जैन प्रकाशचन्द्र जैन डॉ. कमलचन्द सोगाणी मंत्री अध्यक्ष संयोजक 'जैनविद्या संस्थान समिति जयपुर प्रबन्धकारिणी कमेटी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी तीर्थंकर पद्मप्रभु मोक्ष कल्याणक दिवस फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी वीर निर्वाण संवत्-2538 11.02.2012 For Personal & Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृत व्याकरण के . उत्तर For Personal & Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्धि-प्रयोग के उदाहरण (प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ) निम्नलिखित का सन्धि विच्छेद कीजिए और सन्धि का नियम बतलाइये। पाठ 1-मंगलाचरण लोगुत्तमा = लोग+उत्तमा (लोक में उत्तम) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। दिट्ठसयलत्थसारा = दिट्ठसयलअत्थ+सारा (समग्र तत्त्वों के सार जाने गये) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। भवियाणुज्जोययरा = भवियाण+उज्जोययरा (संसारी (जीवों) के लिए प्रकाश को करनेवाले) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व ... स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। पंचक्खरनिप्पण्णो = पंच+अक्खरनिप्पण्णो (पाँच अक्षरों से निकला हुआ) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व . स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। पाठ 2-समणसुत्तं मोहाउरा = मोह+आउरा (मोह से पीड़ित) - नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। तस्सुदयम्मि = तस्स+उदयम्मि (उसके विपाक में) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुक्खोहपरंपरेण = दुक्ख+ओहपरंपरेण (दुःख-समूह की अविच्छिन्न धारा से) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। मंगलमुक्किटुं = मंगलं+उक्किट्ठ (सर्वोच्च कल्याण) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। साहीणे = स+अहीणे (स्व-अधीन) . नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। . . . जाणमजाणं = जाणं+अजाणं (ज्ञान पूर्वक, अज्ञान पूर्वक) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। . खिप्पमप्पाणं = खिप्पं+अप्पाणं (तुरन्त अपने को) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। अत्तोवम्मेण = अत्त+उवम्मेण (अपने से तुलना के द्वारा) नियम 2- असमान स्वर सन्धिः (ख) अ+उ = ओ। धम्ममहिंसा = धम्मं+अहिंसा (अहिंसा धर्म) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। नाऽऽलस्सेण = ना+आलस्सेण (आलस्य के बिना) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (ग) (ii) पूर्वपद के पश्चात् 'आ' का लोप दिखाने के लिए दो अवग्रह चिन्ह भी (ss) लिखे जाते हैं। जस्सेयं = जस्स+एयं (जिसका यह) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (ख) ए, ओ से पहले अ, आ का लोप हो जाता है। आहारासणणिद्दाजयं = आहार+आसणणिद्दाजयं (आहार, आसन और निद्रा पर विजय) नियम 1 - समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाविंदिया = जाव+इंदिया (जब तक इन्द्रियाँ) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। एगंतसुहावहा = एगंतसुह+आहवा (निरपेक्ष सुख को उत्पन्न करनेवाली) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। जयमासे = जयं+आसे (जागरुकतापूर्वक बैठे) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। सरणमुत्तमं = सरणं+उत्तमं (उत्तम शरण) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। पाठ 3-उत्तराध्ययन मगहाहिवो = मगह+अहिवो (मगध का शासक) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। नंदणोवमं = नंदण+उवमं (इन्द्र के बगीचे के समान) नियम 2- असमान स्वर सन्धिः (ख) अ+उ = ओ। सुहोइयं = सुह+उइयं (सुखों के लिए उपयुक्त) नियम 2- असमान स्वर सन्धिः (ख) अ+उ = ओ। नाइदूरमणासन्ने = नाइदूरं+अणासन्ने (न अत्यधिक दूरी पर, न समीप में) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। नाभिसमेमऽहं = न+अभिसमेम+अहं (मैं नहीं जानता हूँ) । . . नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। ' नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (ग) (i) पूर्वपद के पश्चात् 'अ' का लोप दिखाने के लिए एक अवग्रह चिन्ह भी (5) लिखा जाता विम्हयन्नितो = विम्हय+अनितो (आश्चर्ययुक्त) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संपयग्गम्मि = संपया+अग्गम्मि (वैभव के आधिक्य में) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। इंदासणिसमा = इंद+असणिसमा (इन्द्र के वज्र के द्वारा (किए गए आघात से उत्पन्न पीड़ा के) समान) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। नोवभुंजई = न+उवभुंजई (उपयोग नहीं करती है) नियम 2- असमान स्वर सन्धिः (ख) अ+उ = ओ। एवमाहंसु = एवं+आहेसु (इस प्रकार कहा) नियम 6- अनुस्वार विधान : (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। . पाठ 4-वज्जालग्ग नेच्छसि = न+इच्छसि (इच्छा नहीं करते हो) नियम 8.2- आदि स्वर 'ई' के आगे यदि संयुक्त अक्षर आ जाए तो उस आदि 'इ' का 'ए' विकल्प से होता है। यह अनियमित प्रयोग है। परावयारं = पर+अवयारं (दूसरे के अपकार की) . नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। परोवयारं = पर+उवयारं (दूसरे का उपकार) नियम 2- असमान स्वर सन्धिः (ख) अ+उ = ओ। निच्चमावहसि = निच्वं+आवहसि (सदा करते हो) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम ‘म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। सरणागए = सरण+आगए (शरण में आये हुए) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। बहिरंधलिया = बहिर+अंधल+इया ( मिले हुए बहरे व अंधे) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कमे केहि = एक्क+म्+एक्केहि ( प्रत्येक के द्वारा ) नियम 5पदों की द्विरुक्ति में सन्धि विधानः जहाँ पदों की द्विरुक्ति हुई हो, वहाँ दो पदों के बीच में 'म्' विकल्प से आ जाता है। कमलायराण = कमल + आयराण (कमल - समूहों का ) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ + आ = आ। गव्वमुव्वहइ = गव्वं + उव्वहइ (गर्व धारण करता है ) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। नराहिवा = नर + अहिवा ( नराधिपति) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ + अ = आ। जुत्ताजुत्तं = जुत्त+अजुत्तं ( उचित और अनुचित ) नियम 1 - समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ । थिरारंभा = थिर + आरंभा (स्थिर प्रयत्न) नियम 1 - समान स्वर सन्धिः (क) अ + आ = आ। घरंगणं = घर+अंगणं (घर का आंगन ) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। पाठ 5-अष्टपाहुड चारित्तसमारूढो = चारित्तसम + आरूढो ( चारित्र पर पूर्णतः आरूढ़ ) नियम 1 - समान स्वर सन्धिः (क) अ + आ -- आ। अरसमरूवमगंधं = अरसं + अरूवं + अगंधं ( रस रहित, रूप रहित, गंध रहित ) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। चेयणागुणमसद्दं = चेयणागुणं + असद्दं (चेतना, स्वभाव, शब्द रहित ) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only 5 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाणमलिंगग्गहणं = जाणं + अलिंगग्गहणं (ज्ञान का ग्रहण बिना किसी चिह्न के ). नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। जीवमणिद्दट्ठसं ठाणं = जीवं+अणिद्दिट्ठसंठाण (आत्मा का आकार अप्रतिपादित है ) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। सायारणयारभूदाणं = सायार+अणयारभूदाणं (गृहस्थ साधु होनेवालों का) नियम 4• लोप - विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। झाणज्झयणो = झाण + अज्झयणो ( ध्यान और अध्ययन) . नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। परब्भिंतर बाहिरो = पर+अब्भिंतर+बाहिरो (परम, आंतरिक और बहिर) नियम 4लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। अंतोवायेण = अंत + उवायेण (आंतरिक साधन से ) नियम 2- असमान स्वर सन्धिः (ख) अ +उ = बहिरत्थे = बहिर+अत्थे (बाह्य पदार्थ में) कम्मिंधणाण = कम्म + इंधणाण (कर्मरूपी ईंधन को ) 6 नियम 4 लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है । तेव = त + एव ( तुम्हारें लिए ही ) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। ओं। नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (ख) ए, ओ से पहले अ, आ का लोप विकल्प से हो जाता है। प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठ 6-कार्तिकेयानुप्रेक्षा गिह-गोहणाइ = गिह-गोहण+आइ (घर, गायों का समूह वगैरह) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। भुंजिज्जउ = भुंज+इज्जउ (भोगी जावे) । नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। सयलट्ठ-विसयजोओ = सयल+अट्ठ-विसयजोओ (सभी वस्तुओं व इन्द्रिय विषयों का संयोग) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। सव्वायरेण = सव्व+आयरेण (पूर्ण सावधानीपूर्वक) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। एयत्ताविट्ठो = एयत्त+आविठ्ठो (एक ही स्थान में प्रविष्ट) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ आ = आ। कहिज्जमाणं = कह+इज्ज+माणं (कहे जाते हुए) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व . .. स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। पाठ 7-दसरहपव्वज्जा तणमसारं = तणं+असारं (तिनका असार है) . ..नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। मरणग्गिणा = मरण+अग्गिणा (मरणरूपी अग्नि से) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर ... पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। · जेणाहं = जेण+अहं (जिससे मैं) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिक्खाभिमुहं = दिक्ख + अभिमुहं (दीक्षा की ओर अभिमुख ) नियम 1 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। पालणट्ठाए = पालण + अट्ठाए ( पालने के प्रयोजन से ) किमेत्थं = किं+एत्थं (यहाँ क्या ) एक्कोऽत्थ नियम 4- लोप - विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। काऽवत्था = का + अवत्था ( क्या अवस्था ) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है।. नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (ग) (i) पूर्वपद के पश्चात् 'अ' का लोप दिखाने के लिए एक अवग्रह चिन्ह भी (S) लिखा जाता है। 8 = एक्को+अत्थ (अकेला यहाँ) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (ग) (i) पूर्वपद के पश्चात् 'अ' का लोप दिखाने के लिए एक अवग्रह चिन्ह भी (S) लिखा जाता है। भवारणे = भव+आरण्णे (भवरूपी जंगल में) मोहन्थो = मोह + अन्धो (मोहान्ध ) नियम 1 - समान स्वर सन्धिः (क) अ + आ = आ। नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। दिक्खाहिलासिणो = दिक्खा + अहिलासिणो (दीक्षा के अभिलाषी) नियम 1 - समान स्वर सन्धिः (क) आ + अ = आ। विणओवगया = विणअ + उवगया (विनयसहित ) नियम 2- असमान स्वर सन्धिः (ख) अ +उ = ओ। वयणमेयं = वयणं + इयं ( इस वचन को ) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है । प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चलणगुलीए = चलण + अङ्गुलीए (पैरों की अँगुली से ) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। अहमवि = अहं + अवि (मैं भी) नियम 6- अनुस्वार विधान : (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है । पुत्ताऽऽलम्बो = पुत्त+आलम्बो (हे पुत्र, आलम्बन) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (ग) (ii) पूर्वपद के पश्चात् 'आ' का लोप दिखाने के लिए दो अवग्रह चिन्ह भी ( ss) लिखे जाते हैं। नेच्छड़ = न+इच्छइ (इच्छा नहीं करता है) नियम 8.2- आदि स्वर 'इ' के आगे यदि संयुक्त अक्षर आ तो उस आदि 'ई' का 'ए' विकल्प से होता है। यह अनियमित प्रयोग है। सरणमहं = सरणं+अहं (मैं शरण को ) नियम 6- अनुस्वार विधान : (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है । वाऽऽसन्ने = वा+आसन्ने (तथा समीप) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (ग) (ii) पूर्वपद के पश्चात् 'आ' का लोप दिखाने के लिए दो अवग्रह चिन्ह भी (SS) लिखे जाते हैं। पुरोहियाऽमच्च बन्धवा = पुरोहिय + अमच्च + बन्धवा (पुरोहित, अमात्य और बंधुजन) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (ग) (i) पूर्वपद के पश्चात् 'अ' का लोप दिखाने के लिए एक अवग्रह चिन्ह भी (S) लिखा जाता है। ववसिएणऽज्जं = ववसिएण + अज्जं ( आज गंभीर) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (ग) (i) पूर्वपद के पश्चात् 'अ' का लोप दिखाने के लिए एक अवग्रह चिन्ह भी (S) लिखा जाता है। प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only 9 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धरणियलोसित्तअंसुनिवहाओ = धरणियल+ओसित्तअंसुनिवहाओ (आँसुओं के समूह के कारण जमीन भिगोयी हुई) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। एक्कमेक्कं = एक्क+म+एक्कं (प्रत्येक) नियम 5- पदों की द्विरुक्ति में सन्धि विधानः जहाँ पदों की द्विरुक्ति हुई हो, वहाँ दो पदों के बीच में 'म्' विकल्प से आ जाता है। जणवयाइण्णा = जणवय+आइण्णा (जनपद से परिपूर्ण) . नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। विझाडवी = विज्झ+अडवी (विन्ध्याटवी) . नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। दिवसवसाणे = दिवस+अवसाणे (दिन का अन्त होने पर) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। मणभिरामं = मण+अभिरामं (मन के लिए रुचिकर) , नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। पाठ 8-रामनिग्गमण-भरहरज्जविहाणं जिणाययणे = जिण+आययणे (जिन विश्राम स्थल में) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। कल्लोलुच्छलियसंघाया = कल्लोल+उच्छलियसंघाया (तरंगो का समूह उठा हुआ है) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। सीह-ऽच्छभल्लचित्तयघणपायवगिरिवराउले = सीह+अच्छभल्लचित्तयघण पायवगिरिवर+आउले (सिंह, रीछ, भालू, चीते और सघन वृक्षों एवं पर्वतों से व्याप्त) 10 प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (ग) (i) पूर्वपद के पश्चात् 'अ' का लोप दिखाने के लिए एक अवग्रह चिन्ह भी (s) लिखा जाता नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। असरणाणऽम्हं = असरणाण+अम्हं (अशरणों के लिए हम) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (ग) (i) पूर्वपद के पश्चात् 'अ' का लोप दिखाने के लिए एक अवग्रह चिन्ह भी (5) लिखा जाता है। भूयावगुहियं = भूय+अवगुहियं (हाथों से आलिंगित की हुई) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। परतीरावट्ठियं = परतीर+आवट्ठियं (दूरवर्ती किनारे पर स्थित) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। वयणमिणं = वयणं+इणं (यह वचन) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। निक्कण्टयमणुकूलं = निक्कण्टयं+अणुकूलं (निष्कण्टक, अनुकूल) . नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। सिरञ्जलिं = सिर+अञ्जलिं (सिर पर अंजलि) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। तुज्झऽन्नं = तुज्झ+अन्नं (आपके लिए अन्य) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (ग) () पूर्वपद के पश्चात् 'अ' का लोप दिखाने के लिए एक अवग्रह चिन्ह भी (s) लिखा जाता है। • तत्थेव = तत्थ+एव (वहाँ ही) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (ख) ए, ओ से पहले अ, आ का लोप हो जाता है। दक्खिणदेसाभिमुहा = दक्खिणदेस+अभिमुहा (दक्षिण देश के सम्मुख) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक 11 For Personal & Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठ 9-अमंगलियपुरिसस्स कहा भयकारणमदटूण = भय+कारण+अदटूण (भय के कारण को न देखकर) . . नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। नरिंदमुहदसणेच्छा = नरिंदमुहदंसण+इच्छा (राजा के मुख दर्शन की इच्छा) नियम 2- असमान स्वर सन्धिः (क) अ+इ = ए। नरिंदसमीवमाणीओ = नरिंदसमीवं+आणीओ (राजा के समीप लाया गया) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। किमेत्थ = किं+एत्थ (यहाँ क्या) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। वहाएसं = वह+आएसं (वध का आदेश) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। पाठ 10-विउसीए पुत्तबहूए कहाणगं ससुराई = ससुर+आइं (ससुर आदि को) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। धम्मोवएसो = धम्म+उवएसो (धर्म का उपदेश) नियम 2- असमान स्वर सन्धिः (ख) अ+उ = ओ। जीवाणमाहारु = जीवाणं आहारु (जीवों के लिए आधार) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। 12 प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सासूमवि = सासू+अवि (सासू को भी) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। कालंतरे = काल+अंतरे (कुछ समय पश्चात्) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। समणगुणगणालंकिओ = समणगुणगण+आलंकिओ (श्रमण-गुण-समूह से अंलकृत) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। असच्चमुत्तरं = असच्चं+उत्तरं (असत्य उत्तर) नियम 6- अनुस्वार विधानः (i) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। सावमाणं = स+अवमाणं (अपमान सहित) नियम-1 समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। ससुराईण = ससुर+आईण (ससुर आदि के) नियम-1 समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। किमेवं = किं+एवं (इस प्रकार क्यों) . नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। - धम्माभिमुहो = धम्म+अभिमुहो (धर्माभिमुख) नियम-1 समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। नना = न+अन्ना (अन्य नहीं) . नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। समयधम्मोवएसपराए = समयधम्म+उवएसपराए (सिद्धान्त और धर्म के उपदेश में लीन) नियम 2- असमान स्वर सन्धिः (ख) अ+उ = ओ। प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक 13 For Personal & Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संसारासारदसणेण = संसार+असारदसणेण (संसार में असार के दर्शन से) नियम-1 समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। सव्वण्णुधम्माराहगो = सव्वण्णुधम्म+आराहगो (सर्वज्ञ के धर्म का आराधक) नियम-1 समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। पाठ 11-कस्सेसा भज्जा कस्सेसा = कस्स+एसा (यह किसकी) . नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व .. स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। गंगाभिहाणा = गंगा+अभिहाणा (गंगा नामवाली) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) आ+अ = आ। सीलाइगुणालंकिया = सील+आइ+गुण+अलंकिया (शीलादि गुणों से अलंकृत) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ तथा अ+अ = आ। तत्थेव = तत्थ+एव (वहाँ ही) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। एगमन्नपिंडं = एगं+अन्न+पिंडं (एक अन्य पिंड को) . नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम ‘म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। कत्थवि = कत्थ+अवि (कहीं भी) नियम 7- अव्यय-सन्धिः (i) किसी भी पद के बाद आये हुए अपि/अवि अव्यय के 'अ' का विकल्प से लोप होता है। अणेगदेवयापूयादाणमंतजवाइं = अणेगदेवयापूयादाणमंतजव+आई (अनेक देवताओं की पूजा, दान, मंत्र, जप आदि) नियम-1 समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। अहमवि = अहं+अवि (मैं भी) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। 14 प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवावेमि = जीव+आवेमि (जिलाऊँगा) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। सालंकारा = स+अलंकारा (अलंकार सहित) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। कन्नापाणिग्गहणत्थमन्नोन्नं = कन्ना+पाणिग्गहण+अत्थं+अनोन्नं (कन्या से विवाह करने के लिए आपस में) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। केणावि = केण+अवि (किसी के द्वारा भी) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। कुरुचंदाभिहाणेण = कुरुचंद+अभिहाणेण (कुरुचंद नामवाले) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। पाठ 12-ससुरगेहवासीणं चउजामायराणं कहा परिणाविआओ = परिण+आविआओ (विवाह करवा दी गई) . नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। समागया = सम+आगया (साथ-साथ आये) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। गुडमीसिअमन्नं = गुडमीसिअं+अन्नं (गुड से मिश्रित अन्न) . नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। पुणावि = पुण+अवि (फिर, भी) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। उयरग्गिदीवणेण = उयर+अग्गिदीवणेण (उदर की अग्नि का उद्दीपक होने के कारण) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक 15 For Personal & Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आत्थरणाभावे = आत्थरण+अभावे (बिस्तर के अभाव में) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आं। तुरंगमपिट्ठच्छाइआवरणवत्थं = तुरंगमपिट्ठ+अच्छाइआवरणवत्थं (घोड़े .. की पीठ पर ढकनेवाले आवरण वस्त्र को) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। गिहावासे = गिह+आवासे (गृहवास में) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ।. . पाठ 13-कुम्मे निरुव्विग्गाई = निर+उव्विग्गाइं (उद्वेग-रहित) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। आमिसहारा = आमिस+आहारा (मांसाहारी) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ आ = आ। चिरत्थमियंसि = चिर+अत्थमियंसि (दीर्घकाल से अस्त होने पर) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। तस्सेव = तस्स+एव (उस ही) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (ख) ए, ओ से पहले अ, आ का लोप हो जाता है। आहारत्थी = आहार+अत्थी (आहार के इच्छुक) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। एगंतमवक्कमंति = एगंतं+अवक्कमति (एकान्त में जाते हैं) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। 16 प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समणाउसो = समण+आउसो (हे आयुष्यमान श्रमण!) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। अगुत्तिदिए = अ+गुत्त+इंदिए (इन्द्रियों का गोपन नहीं करनेवाला) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। दिसावलोयं = दिसा+अवलोयं (सब दिशाओं में अवलोकन) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) आ+अ = आ। पाठ 14-चिट्ठी तेणिंदभूदिणा = तेण+इंदभूदिणा (उस इन्द्रभूति के द्वारा) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। बारहंगाणं = बारह+अंगाणं (बारह अंगों की) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। गंथाणमेक्केण = गंथाणं+एक्केण (ग्रंथों की एक) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। जादेत्ति = जादा+इति (इस प्रकार हुई) नियम 2- असमान स्वर सन्धिः (क) आ+इ = ए। दुविहमवि = दुविहं+अवि (दोनों प्रकार का भी) . . . नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। नियम 7 - अव्यय-सन्धिः (i) किसी भी पद के बाद आये हुए अपि/अवि अव्यय के 'अ' का विकल्प से लोप होता है। · परिवाडिमस्सिदूण = परिवाडिं+अस्सिदूण (परिपाटी को ग्रहण करके) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक 17 For Personal & Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सव्वेसिमंगपुव्वाणमेगदेसो = सव्वेसिं+अंग+पुव्वाणं+एगदेसो (सभी अंग (और) पूर्वो का एक देश) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम ‘म्' के . पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। दक्खिणावहाइरियाणं = दक्खिणावह+आइरियाणं (दक्षिणापथ के आचार्यों के ... लिए) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। धरसेणाइरियवयणमवधारिय = धरसेण+आइरिय+वयणं+अवधारिय. . (धरसेनाचार्य के वचन को सुनकर) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के .. पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। धवलामल-बहुविहविणयविहूसिया = धवल+अमलबहविहविणय विहूसिया (अनेक प्रकार की उज्जवल और निर्मल विनय से विभूषित अंगवाले) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। तिक्खुत्ताबुच्छियाइरिया = तिक्खुत्ताबुच्छिय+आइरिया (आचार्य तीन बार पूछे गये) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। कुंदेंदु-संखवण्णा = कुंद+इंदुसंखवण्णा (चन्द्रमा और संख के समान वर्णवाले कुन्द के पुष्प) नियम 2- असमान स्वर सन्धिः (क) अ+इ = ए। धरसेणाइरियं = धरसेण+आइरियं (धरसेन आचार्य को) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। पादमूलमुवगया = पादमूलं+उवगया (चरण को प्राप्त हुए हैं) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। 18 प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नियम 1- स. जहाछंदाईणं = जहाछंद+आईणं (जैसे स्वछन्दता से आचरित) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। संसारभयवद्धणमिदि = संसारभयवद्धणं+इदि (इस प्रकार संसार भय को बढ़ानेवाला) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम ‘म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। परिक्खाकाउमाढत्ता = परिक्खाकाउं+आढत्ता (परीक्षा करने के लिए आरम्भ किया गया) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। हिययणिव्वुइकरेत्ति = हिययणिव्वुइकर+इत्ति (हृदय में निवृत्तिजनक) नियम 2- असमान स्वर सन्धिः (क) अ+इ = ए। अहियक्खरा = अहिय+अक्खरा (अधिक अक्षरवाली) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। विहीणक्खरा = विहीण+अक्खरा (कम अक्षरवाली) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। छटोववासेण = छट्ठ+उववासेण (लगातार दो दिन के उपवास से) नियम 2- असमान स्वर सन्धिः (ख) अ+उ = ओ। हीणाहियक्खराणं = हीण+अहिय+अक्खराणं (हीन और अधिक अक्षरों का) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व . स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। छुहणावणयणविहाणं = छुहण+आवणयणविहाणं (डालने और निकालने के विधान को) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। तत्थेयस्स = तत्थ+एयस्स (उनमें से एक को) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक 19 For Personal & Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अत्थवयत्थट्ठियदंतपंतिमोसारिय = अत्थवियत्थट्ठियदंतपंति ओसारिय (अस्त-व्यस्त हुई दंतपंक्ति को दूर की गई) नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम ‘म्' के . पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। . गुरु-वयणमलंघणिज्ज = गुरु-वयणं+अलंघणिज्जं (मुरु के वचन अलंघनीय) . . नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। चिंतिऊणागदेहि = चिंतिऊण+आगदेहि (विचारकर आते हुए) .. ... ___नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ आ = आ।... पुप्फयंताइरियो = पुप्फयंत+आइरियो (पुष्पदंत आचार्य) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ आ = आ। पुप्फयंतआइरिएण = पुप्फयंतआइरिअ+एण (पुष्पदंत आचार्य के द्वारा).. नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। पमाणाणुगममादि = पमाण+अणुगमं+आदि (प्रमाणाणुगम आदि को) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। नियम 6- अनुस्वार विधानः (ii) यदि पद के अन्तिम 'म्' के .. पश्चात् स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। भूदबलिपुप्फयंताइरिया = भूदबलिपुप्फयंत+आइरिया (भूतबलि पुष्पदंत आचार्य) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। 20 प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समास प्रयोग के उदाहरण (प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ) पाठ 1-मंगलाचरण पंचणमोक्कारो (पंच-नमस्कार) नियम 2.2- दिगु समास (द्विगु समास) केवलिपण्णत्तो (केवली द्वारा उपदिष्ट) नियम 2- तइया विभत्ति तप्पुरिस समास (तृतीया तत्पुरुष समास) लोगुत्तमा (लोक में उत्तम) नियम 2- सत्तमी विभत्ति तप्पुरिस समास (सप्तमी तत्पुरुष समास) आराहणणायगे (आराधना के लिए श्रेष्ठ) नियम 2- चउत्थी विभत्ति तप्पुरिस समास (चतुर्थी तत्पुरुष समास) अणुवमसोक्खा (अनुपम सुख) . नियम 2.1- कम्मधारय समास (कर्मधारय समास) णिट्ठियकज्जा (प्रयोजन पूर्ण किये हुए) नियम 3- बहुव्वीहि समास (बहुब्रीहि समास) पण?संसारा (संसार नष्ट किया हुआ) .. नियम 3- बहुव्वीहि समास (बहुब्रीहि समास) दिट्ठसयलत्थसारा (समग्र तत्त्वों के सार जाने गये) ... नियम 3- बहुव्वीहि समास (बहुव्रीहि समास) पंचमहव्वयतुंगा (पाँच महाव्रतों से उन्नत) नियम 2- तइया विभत्ति तप्पुरिस समास (तृतीया तत्पुरुष समास) ववगयराया (राग दूर किये गये) नियम 3- बहुव्वीहि समास (बहुब्रीहि समास) 21 प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचक्खरनिप्पणो (पाँच अक्षरों से निकला हुआ) नियम 2- तइया विभत्ति तप्पुरिस समास (तृतीया तत्पुरुष समास ) भत्तिजुत्तो ( भक्ति सहित) नियम 2- तइया विभत्ति तप्पुरिस समास (तृतीया तत्पुरुष समास ) पवयणसारं (प्रवचन के सार को) नियम 2 - छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास ) समणसुत्तं नियम 2- छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास ) इंदिअविसएस (इन्द्रिय-विषयों में) पाठ 2 मोहाउरा (मोह से पीड़ित) नियम 2- तइया विभत्ति तप्पुरिस समास (तृतीया तत्पुरुष समास ) कम्मवसा (कर्मों के अधीन ) नियम 2- छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास ) पोक्खरिणीपलासे (कमलिनी का पत्ता ) छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास ) नियम 2मुत्तिसुहं (मुक्ति सुख को ) नियम 2छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास ) विसयासत्तु (विषय में आसक्त) नियम 2- सत्तमी विभत्ति तप्पुरिस समास ( सप्तमी तत्पुरुष समास ) जीवदया ( जीव के लिए दया) नियम 2- चउत्थी विभत्ति तप्पुरिस समास (चतुर्थी तत्पुरुष समास ) सरणमुत्तमं (उत्तम शरण) नियम 2.1- कम्मधारय समास (कर्मधारय समास) 22 सुहोइयं (सुखों के लिए उपयुक्त) - पाठ 3 उत्तराध्ययन नियम 2- चउत्थी विभत्ति तप्पुरिस समास (चतुर्थी तत्पुरुष समास ) प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मगहाहिवो (मगध का शासक) नियम 2- छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) पभूयधणसंचओ (प्रचुर धन का संग्रह) नियम 2- छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) अच्छिवेयणा (आँखों में पीड़ा) नियम 2-सत्तमी विभत्ति तप्पुरिस समास (सप्तमी तत्पुरुष समास) सत्थकुसला (शास्त्र में योग्य) नियम 2-सत्तमी विभत्ति तप्पुरिस समास (सप्तमी तत्पुरुष समास) पाठ 4-वज्जालग्ग सुयणसहावो (सज्जन का स्वभाव) नियम 2- छठ्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) पाहाणरेहा (पत्थर की रेखा) नियम 2- छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस (षष्ठी तत्पुरुष) सरणागए (शरण में आये हुए) । . नियम 2-सत्तमी विभत्ति तप्पुरिस समास (सप्तमी तत्पुरुष समास) दिणयरवासराण (सूर्य और दिन की) नियम 1- दंद समास (द्वन्द्व समास) थिरारंभा (स्थिर प्रयत्न) नियम 2.1- कम्मधारय समास (कर्मधारय समास) घरंगणं (घर का आँगन) .... नियम 2- छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) पाठ 5-अष्टपाहुड विणयसंजुत्तो (विनय से जुड़ा हुआ) नियम 2- तइया विभत्ति तप्पुरिस समास (तृतीया तत्पुरुष समास) दयाविसुद्धो (दया से शुद्ध किया हुआ) नियम 2- तइया विभत्ति तप्पुरिस समास (तृतीया तत्पुरुष समास) प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक 23 For Personal & Private Use Only For Personal & Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमलिंगं (प्रधान वेश) नियम 2.1- कम्मधारय समास (कर्मधारय समास) झाणज्झयणो (ध्यान और अध्ययन) नियम 1- दंद समास (द्वन्द्व समास) करुणाभावसंजुत्ता (करुणाभाव से संयुक्त) नियम 2- तइया विभत्ति तप्पुरिस समास (तृतीया तत्पुरुष समास) चरित्तखग्गेण (चारित्ररूपी तलवार से) नियम 2.1- कम्मधारय समास (कर्मधारय समास) विरत्तचित्तो (उदासीन चित्त) नियम 2.1- कम्मधारय समास (कर्मधारय समास) पाठ 6-कार्तिकेयानुप्रेक्षा जल-भरिओ (जल से भरा हुआ) नियम 2- तइया विभत्ति तप्पुरिस समास (तृतीया तत्पुरुष समास) दुक्ख-सायरे (दुःख के सागर में) नियम 2- छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) सुक्ख-दुक्खाणि (सुख और दुःखों को) नियम 1- दंद समास (द्वन्द्व समास) पाठ 7-दसरहपवज्जा चरित्तखग्गेण (चारित्ररूपी तलवार से) नियम 2.1- कम्मधारय समास (कर्मधारय समास) सव्वकलाकुसला (सब कलाओं में कुशल) नियम 2- सत्तमी विभत्ति तप्पुरिस समास (सप्तमी तत्पुरुष समास) दिक्खाहिलासिणो (दीक्षा के अभिलाषी) नियम 2- छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) दुद्धरचरिया (दुर्धर चर्या) नियम 2.1- कम्मधारय समास (कर्मधारय समास) 24 प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महासंगामे (महासंग्राम में) नियम 2.1- कम्मधारय समास (कर्मधारय समास) चिन्तासमुद्दे (चिन्तारूपी समुद्र में) नियम 2.1- कम्मधारय समास (कर्मधारय समास) भोगकारणं (सुख का कारण) नियम 2- छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) सिरपणामं (सिर से प्रणाम) नियम 2- तइया विभत्ति तप्पुरिस समास (तृतीया तत्पुरुष समास) चलणवन्दणं (चरणों में वन्दन) नियम 2-सत्तमी विभत्ति तप्पुरिस समास (सप्तमी तत्पुरुष समास) कलुणपलावं (करुण रुदन) नियम 2.1- कम्मधारय समास (कर्मधारय समास) जणवयाइण्णा (जनपद से परिपूर्ण) . नियम 2- तइया विभत्ति तप्पुरिस समास (तृतीया तत्पुरुष समास) जणयधूया (जनकपुत्री) नियम 2 - छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) पाठ 8 - रामनिग्गमण-भरहरज्जविहाणं जलसमिद्धा (जल से समृद्ध) नियम 2- तइया विभत्ति तप्पुरिस समास (तृतीया तत्पुरुष समास) . आणागुणविसालं (आज्ञागुण से समृद्ध) .. नियम 2- तइया विभत्ति तप्पुरिस समास (तृतीया तत्पुरुष समास) नमियसरीरो (झुके हुए शरीरवाला) नियम 2.1- कम्मधारय समास (कर्मधारय समास) पाठ 9 – अमंगलिय पुरिसस्स कहा परचक्कभएण (शत्रु के द्वारा आक्रमण के भय से) . नियम 2- तइया विभत्ति तप्पुरिस समास (तृतीया तत्पुरुष समास) प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक 25 For Personal & Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहपेक्खणेण (मुख देखने से) नियम 2- छठ्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) वयणजुत्तीए (वचनयुक्ति से) नियम 2- छठ्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) मुहदसणं (मुखदर्शन ने) नियम 2- छठ्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) पाठ 10-विउसीए पुत्तबहूए कहाणगं . अट्ठवासा (आठ वर्ष की) ___ नियम 2.2- दिगु समास (द्विगु समास) पिउपेरणाए (पिता की प्रेरणा से) नियम 2- छठ्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) सव्वण्णधम्मसवणेण (सर्वज्ञ के धर्म के श्रवण से) नियम 2- छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) ससुरगेहे (ससुर के घर में) नियम 2- छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) धम्मोवएसो (धर्म का उपदेश) . नियम 2- छठ्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) हिययगयभावं (हृदय में उत्पन्न भाव को) नियम 2-सत्तमी विभत्ति तप्पुरिस समास (सप्तमी तत्पुरुष समास) वीसवासेसु (बीस वर्ष) नियम 2.2- दिगु समास (द्विगु समास) बारसवासा (बारह वर्ष) नियम 2.2- दिगु समास (द्विगु समास) असच्चमुत्तर (असत्य उत्तर) नियम 2.1- कम्मधारय समास (कर्मधारय समास) मरणसमयस्स (मरण समय का) नियम 2- छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) 26 प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्महीणमणुसस्स (धर्महीन मनुष्य का) नियम 2.1- कम्मधारय समास (कर्मधारय समास) माणवभवो (मनुष्य भव) नियम 2- छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) धम्मपत्तीए (धर्म लाभ में) नियम 2- छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) पंचवासा (पाँच वर्ष) नियम 2.2- दिगु समास (द्विगु समास) पाठ 11-कस्सेसा भज्जा जणय-जणणी-भाया-माउलेहिं (पिता, माता, भाई और मामा के द्वारा) नियम 1- दंद समास (द्वन्द्व समास) अमयरसकुप्पयं (अमृतरस के घड़े से) नियम 2- छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) गंगामज्झम्मि (गंगा के मध्य में) नियम 2- छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) पाठ 12-ससुरगेहवासीणं चउजामायराणं कहा घयजुत्तो (घी से युक्त) नियम 2- तइया विभत्ति तप्पुरिस समास (तृतीया तत्पुरुष समास) .. तिलतेल्लजुत्तं (तिल के तेल से युक्त) नियम 2- छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) विविहकीलाओ (विविध क्रीड़ाएँ) नियम 2.1- कम्मधारय समास (कर्मधारय समास) . भोयणरसलुद्धा (भोजन रस के लोभी) __ नियम 2- छुट्टी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक 27 For Personal & Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठ 13-कुम्मे पावसियालगा (पापी सियार) नियम 2.1- कम्मधारय समास (कर्मधारय समास) आयरियउवज्झायाणं (आचार्य और उपाध्याय) नियम 1- दंद समास (द्वन्द्व समास) पाठ 14-चिट्ठी बारहंगाणं (बारह अंगों की) नियम 2.2- दिगु समास (द्विगु समास) विज्जा-दाणं (विद्या का दान) नियम 2- छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस समास (षष्ठी तत्पुरुष समास) सिद्धविज्जा (सिद्ध विद्यावाले) नियम 3- बहुव्वीहि समास (बहुब्रीहि समास) विंसदि-सुत्ताणि (बीस सूत्र) नियम 2.2- दिगु समास (द्विगु समास) 2.8 प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कारक प्रथमा विभक्तिः कर्ता कारक यहाँ प्रथमा विभक्ति के अभ्यास वाक्य नहीं दिये गये हैं। इन्हें 'प्राकृतव्याकरण' में दिये गये उदाहरण वाक्यों से समझा जाना चाहिए। द्वितीया विभक्तिः कर्म कारक अभ्यास 1 1. तेण (3/1) गंथो. (1/1) पढिज्जइ/पढीअइ/पढिज्जए/पढीअए/आदि। नियम 1- कर्मवाच्य में कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है। सो (1/1) बालअं (5/1- 2/1) पहं (2/1) पुच्छइ/पुच्छेइ/पुच्छए/ पुच्छदे/आदि। नियम 2- द्विकर्मक क्रियाओं के योग में मुख्य कर्म में द्वितीया विभक्ति एवं गौण कर्म में सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि विभक्तियों के होने पर भी द्वितीया विभक्ति होती है। सो (1/1) गाविं (5/1-2/1) दुद्धं (2/1) दुहइ/दुहेइ/दुहए/आदि। नियम 2- अपादान 5/1 के स्थान पर द्वितीया विभक्ति। सो (1/1) रुक्खं (5/1-2/1) पुप्फ (2/1) चुणइ/चुणेइ/आदि। नियम 2- अपादान 5/1 के स्थान पर द्वितीया विभक्ति। 5. मुणी (1/1) बालअं (4/1--2/1) धम्मं (2/1) उवदिसइ/उवदिसेइ/ उवदिसए/उवदिसदि/आदि। नियम 2- सम्प्रदान 4/1 के स्थान पर द्वितीया विभक्ति। ___6. सो (1/1) तं (5/1-2/1) धणं (2/1) मग्गइ/मग्गेइ/मग्गए/आदि। ... नियम 2- अपादान 5/1 के स्थान पर द्वितीया विभक्ति। लं . प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक 29 For Personal & Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 30 तुमं / तुं / तुह ( 1 / 1 ) अग्गिं ( 3 / 1-2 / 1 ) भोयणं ( 2 / 1) पचहि / पचसु / पचधि/पच/पचेज्जसु/पचेज्जहि/पचेज्जे । नियम 2- करण 3 / 1 के स्थान पर द्वितीया विभक्ति । नरिंदो (1/1) मंति/मंती (2 / 1) णयरं ( 7 / 1-2 / 1 ) वह / वह / वह अथवा णीणइ / णीणेइ/णीणए / आदि । नियम 2- अधिकरण 7/1 के स्थान पर द्वितीया विभक्ति। अहं / हं / अम्मि (1 / 1 ) देवउलं ( 2 / 1 ) गच्छमि / गच्छामि / गच्छेमि । नियम 3 - सभी गत्यार्थक क्रियाओं के योग में द्वितीया विभक्ति होती . सो (1/1) रत्तिं (7/12/1 ) मित्तं (2 / 1) सुमरइ / सुमरेइ / सुमरए। नियम 4- सप्तमी विभक्ति के स्थान पर कभी-कभी द्वितीया विभक्ति होती है। सुअणस्स (6 / 1 ) विज्जुफुरियं (1 / 1-2 / 1 ) कोहो ( 1 / 1 ) हवइ / हवेइ / हवए / हवदि / आदि । नियम 5- प्रथमा विभक्ति के स्थान पर कभी-कभी -द्वितीया विभक्ति होती है। देवा (1/2) सग्गं ( 2 / 1 ) उववसन्ति / उववसन्ते / उववसिरे / अनुवसन्ति / अहिवसन्ति / आवसन्ति / आदि । नियम 6- यदि वस क्रिया के पूर्व उव, अनु, अहि और आ में से कोई भी उपसर्ग हो तो क्रिया के आधार में द्वितीया होती है। कण्हं (2 / 1) सव्वओ बालआ (1/2) अत्थि । नियम 7- सव्वओ (सब ओर ) के साथ द्वितीया विभक्ति होती है। यरं (2/1) समया सरिआ ( 1 / 1 ) अत्थि । नियम 7 - समया (समीप) के साथ द्वितीया विभक्ति होती है। यरस (6/1) अंतियं ( 2 / 1 ) सरिआ ( 1 / 1 ) अत्थि। नियम 11 - अंतिय (समीप) द्वितीया विभक्ति में प्रयोग तं ( 2 / 1 ) अन्तरेण / विणा अहं / हं / अम्मि (1 / 1 ) गच्छमि / गच्छामि / हुआ गच्छेमि । है। प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नियम 8 व 12- अन्तरेण व विणा के योग में द्वितीया विभक्ति होती 16. णइं (2/1) णयरं (2/1) य अन्तरा वणं (1/1) अत्थि। नियम 8- अन्तरा (बीच में, मध्य में) के योग में द्वितीया विभक्ति होती है। बालअं (2/1) पडि तुम/तुं/तुह (1/1) सनेहं (2/1) करसि/करसे/ 17. करेसि। 13 19. नियम 9- पडि (की ओर, की तरफ) के योग में द्वितीया विभक्ति होती है। सो (1/1) बारह वरिसाइं/वरिसाइँ/वरिसाणि (2/2) वसइ/वसेइ/ वसए/आदि। नियम 10- समयवाची शब्दों में द्वितीया विभक्ति होती है। अहं/हं/अम्मि (1/1) कोसं (2/1) चलमि/चलामि/चलेमि। नियम 10- मार्गवाची शब्दों में द्वितीया विभक्ति होती है। णई (1/1) णयरत्तो/णयराओ/आदि (5/1) दूरं (2/1) अस्थि। नियम 11- दूर (नपुंसकलिंग) शब्द द्वितीया विभक्ति में रखा जाता है। सायरस्सं (6/1) अंतियं (2/1) लंका अत्थि। नियम 11- अंतिय (नपुंसकलिंग) शब्द द्वितीया विभक्ति में रखा जाता 20. 21. 22. सो (1/1) दुहं (2/1) जीवइ/जीवेइ/जीवए। . . नियम 13- कभी-कभी संज्ञा शब्द की द्वितीया विभक्ति का एकवचन क्रियाविशेषण के रूप में प्रयुक्त होता है। ... ... तृतीया विभक्तिः करण कारक अभ्यास 2 1. सो (1/1) जलेण/जलेणं (3/1) करा (2/2) पच्छालइ/पच्छालेइ/ पच्छालए। नियम 1- कार्य की सिद्धि में जो कर्ता के लिए अत्यन्त सहायक होता है वह करण कहा जाता है। उसे तृतीया विभक्ति में रखा जाता है। प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक 31 For Personal & Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. 3. 5. तेण/तेणं (3/1) दिवायरो (1/1) देखिज्जइ/देखिज्जए/देखीअइ/आदि। नियम 2- कर्मवाच्य में तृतीया विभक्ति होती है। कन्नाए/कन्नए (3/1) लज्जिज्जइ/लज्जिज्जए/लज्जीअइ/आदि। नियम 2- भाववाच्य में तृतीया विभक्ति होती है। पुण्णेण/पुण्णेणं (3/1) हरी (1/1) देक्खिओ। नियम 3- कारण व्यक्त करने वाले शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है। हरि/हरी (1/1) पंचहि/पंचहिं/पंचहिँ (3/2) दिणेहि/दिणेहिं/ दिणेहिँ (3/2) एकेण (3/1) कोसेण/कोसेणं (3/1) गच्छी। .. नियम 4- फल प्राप्त या कार्य सिद्ध होने पर कालवाचक और मार्गवाचक शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है। सो (1/1) बारहहि/बारहहिं/बारहहिँ (3/2) वरिसेहि/वरिसेहिं/ वरिसेहिँ (3/2) वागरणं (2/1) पढइ/पढेइ/पढए/आदि। ... नियम 4- फल प्राप्त या कार्य सिद्ध होने पर कालवाचक शब्दों में, तृतीया विभक्ति होती है। पुत्तेण/पुत्तेणं (3/1) सह बप्पो (1/1) गच्छइ/गच्छेइ/गच्छए/आदि। नियम 5- सह, सद्धिं, समं (साथ) अर्थ वाले शब्दों के योग में तृतीया . विभक्ति होती है। बप्पो (1/1) पुत्तेण/पुत्तेणं (3/1) समं खेलइ/खेलेइ/खेलए/आदि। नियम 5- सह, सद्धिं, समं (साथ) अर्थ वाले शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है। जलं (2/1) अथवा जलेण/जलेणं (3/1) अथवा जलत्तो (5/1) विणा कमलं (1/1) न विअसइ/विअसेइ/विअसए/आदि। नियम 5-'विणा' शब्द के साथ द्वितीया, तृतीया या पंचमी विभक्ति होती है। सो (1/1) नरिदेण/नरिदेणं (3/1) अथवा नरिंदस्स (6/1) तुल्लो अत्थि । नियम 7- तुल्य (समान, बराबर) का अर्थ बताने वाले शब्दों के साथ तृतीया अथवा षष्ठी विभक्ति होती है। 7. 10. 32 प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11. 12. 13. 14. सो (1/1) कण्णेण / कण्णेणं ( 3 / 1 ) बहिरो (1 / 1 ) अत्थि । नियम 8 - शरीर के विकृत अंग को बताने के लिए तृतीया विभक्ति होती है। सो (1/1) णेहेण / णेहेणं ( 3 / 1 ) घरं ( 2 / 1 ) आवइ / आवेइ / आवए । नियम 9 - क्रियाविशेषण शब्दों में भी तृतीया विभक्ति होती है। सीले/सीलम्मि (7/1) णट्टे/ णट्ठम्मि (7/1) उच्चेण कुलेण (3 / 1 ) किं ? नियम 11 - किं, कज्जं, अत्थो इसी प्रकार प्रयोजन प्रकट करने वाले शब्दों के योग में आवश्यक वस्तु को तृतीया विभक्ति में रखा जाता है। ईसराण/ ईसराणं (6/2) कज्जं (1 / 1) तिणेण / तिणेणं ( 3 / 1 ) वि हवइ / हवेइ/हवए/ आदि। नियम 11- किं, कज्जं, अत्थो इसी प्रकार प्रयोजन प्रकट करने वाले शब्दों के योग में आवश्यक वस्तु को तृतीया विभक्ति में रखा जाता है। चतुर्थी विभक्तिः सम्प्रदान कारक अभ्यास 3 सो (1/1 ) पुत्तीअ / पुत्तीआ / पुत्तीइ / पुत्तीए (4 / 1 ) धणं ( 2 / 1 ) देइ । नियम 1- दान कार्य के द्वारा कर्त्ता जिसे सन्तुष्ट करना चाहता है, उस व्यक्ति की सम्प्रदान कारक संज्ञा होती है । सम्प्रदान को बताने वाले संज्ञापद को चतुर्थी विभक्ति में रखा जाता है। सो ( 1 / 1 ) धणस्स (4 / 1) चेट्ठइ / चेट्ठेइ / चेट्ठए । नियम 2- जिस प्रयोजन के लिए कोई कार्य होता है, उस प्रयोजन में चतुर्थी विभक्ति होती है। हरिस्स / हरिणो (4 / 1 ) भत्ती (1 / 1 ) रोअइ / रोएइ / रोअए । नियम 3 - रोअ (अच्छा लगना) तथा रोअ के समान अर्थ वाली अन्य क्रियाओं के योग में प्रसन्न होने वाला सम्प्रदान कहलाता है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। • प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only 33 Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4. 6. 7. नरिंदो (1/1) मंतिस्स/मंतिणो (4/1) कुज्झइ/कुज्झेइ/कुज्झए/आदि। नियम 4- कुज्झ (क्रोध करना), क्रिया के योग में जिसके ऊपर क्रोध किया जाए उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। मंती (1/1) नरिंदं (2/1) अथवा नरिंदस्स (4/1) णमइ/णमेइ/णमए। नियम 5- ‘णम' क्रिया के योग में द्वितीया और चतुर्थी विभक्ति दोनों होती हैं। धन्नं (1/1) भोयणस्स (4/1) अलं अत्थि। नियम 6- अलं (पर्याप्त) के अर्थ में चतुर्थी विभक्ति होती है। .. सो (1/1) मुत्तीअ/मुत्तीआ/मुत्तीइ/मुत्तीए (4/1) सिहइ/आदि। नियम 7- सिह (चाहना) क्रिया के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। माया/माय (1/1) पुत्तीअ/पुत्तीआ/पुत्तीइ/पुत्तीए (4/1) कहा/ ... कह (2/1) कहइ/कहेइ/कहए अथवा संसइ/संसेइ/संसए अथवा चक्खइ/चक्खेइ/चक्खए/आदि। नियम 8- कह (कहना), संस (कहना), चक्ख (कहना) क्रियाओं के योग में जिस व्यक्ति से कुछ कहा जाता है उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। नरिंदो (1/1) भोयणत्थं (4/1) अच्छइ/अच्छेइ/अच्छए/आदि। नियम 9- चतुर्थी के अर्थ में अत्थं (अव्यय) का प्रयोग भी होता है। सो (1/1) नरिंदस्स (4/1) ईसइ/ईसेइ/ईसए/आदि। नियम 4- ईस (ईर्ष्या करना) क्रिया के योग में जिससे ईर्ष्या की जाए उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। रहुणन्दनो (1/1) असच्चस्स (4/1) असूअइ/असूएइ/असूअए/आदि। नियम 4- असूअ (घृणा करना) क्रिया के योग में जिससे घृणा की जाए उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। 9. 10. 11. पंचमी विभक्तिः अपादान कारक अभ्यास 4 1. गिरीउ/गिरीओ/गिरिणो/गिरित्तो/गिरीहिन्तो (5/1) सरिआ (1/1) णीसरइ/णीसरेइ/णीसरए/आदि। 34 प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 नियम 1- जिससे किसी वस्तु का अलग होना पाया जाता है, उसे अपादान कहते हैं। अपादान को बताने वाले संज्ञापद को पंचमी विभक्ति में रखा जाता है। पत्ता/पत्ताउ/पत्ताओ/पत्तत्तो/पत्ताहि/पत्ताहिन्तो (5/1) बिन्दूइं/ बिन्दुइँ/बिन्दूणि (1/2) पडन्ति/पडेन्ति/पडन्ते/पडिरे। नियम 1- जिससे किसी वस्तु का अलग होना पाया जाता है, उसे अपादान कहते हैं। अपादान को बताने वाले संज्ञापद को पंचमी विभक्ति में रखा जाता है। सो गंभीरेण/गंभीरेणं (3/1) अथवा गंभीरा/गंभीराउ/गंभीराओ/ गंभीरत्तो/गंभीराहि/गंभीराहिन्तो (5/1) पसिद्धइ/पसिद्धए/आदि। नियम 2- गुणवाचक अस्त्रीलिंग संज्ञा शब्द (पुल्लिंग, नपुंसकलिंग संज्ञा शब्द) जो किसी क्रिया या घटना का कारण बताता है, उसमें तृतीया या पंचमी विभक्ति होती है। 4. चोरो (1/1) नरिंदा/नरिंदाउ/नरिंदाओ/नरिंदत्तो/ नरिंदाहि/ नरिंदाहिन्तो (5/1) डरइ/डरेइ/डरए/आदि। नियम 3- भय अर्थवाली धातुओं के योग में भय का कारण पंचमी विभक्ति में रखा जाता है। 5. सो बप्पा/बप्पाउ/बप्पाओ/बप्पत्तो/बप्पाहि/बप्पाहिन्तो(5/1) ___ लुक्कइ/लुक्केइ/लुक्कए/आदि। नियम 4- जब कोई अपने को छिपाता है, तो जिससे छिपना चाहता है वहाँ पंचमी विभक्ति होती है। • '6. सो पावा/पावाउ/पावाओ/पावत्तो/पावाहि/पावाहिन्तो (5/1) रोक्कइ/रोक्केइ/रोक्कए/आदि। नियम 5- रोकना अर्थवाली क्रियाओं के योग में पंचमी विभक्ति होती है। तुमं/तुं/तुह गुरूउ/गुरूओ/गुरुणो/गुरुत्तो/गुरूहिन्तो (5/1) गंथं (2/1) पढहि/पढसु/पढधि/पढ/पढेज्जसु/पढेज्जहि/पढेज्जे। नियम 6- जिससे विद्या, कला पढ़ी/सीखी जाए, उसमें पंचमी विभक्ति होती है। प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक 35 For Personal & Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8. नरिंदो (1/1) असच्चा/असच्चाउ/असच्चाओ/असच्चत्तो/ असच्चाहि/असच्चाहिन्तो (5/1) दुगुच्छइ/दुगुच्छेइ/दुगुच्छए/आदि। नियम 7- दुगुच्छ (घृणा) शब्द या क्रिया के साथ पंचमी विभक्ति होती . 9. मुक्खो (1/1) सज्जणा/सज्जणाउ/सज्जणाओ/सज्जणत्तो/ सज्जणाहि/सज्जणाहिन्तो (5/1) विरमइ/विरमेइ/विरमए/आदि। नियम 7- विरम (हटना) शब्द या क्रिया के साथ पंचमी विभक्ति होती है। 10. सो (1/1) सज्झाये/सज्झायम्मि (7/1) सज्झायेण/सज्झायेणं. (3/1) पमायइ/पमायेइ/पमायए/आदि। नियम 10- पंचमी के स्थान में कभी-कभी कहीं-कहीं तृतीया और सप्तमी विभक्ति पाई जाती है। 11. कोहा/कोहाउ/कोहाओ/कोहत्तो/कोहाहि/कोहाहिन्तो (5/1) मोहो (1/1) उप्पज्जइ/उप्पज्जेइ/उप्पज्जए/आदि।। नियम 8- उप्पज्ज (उत्पन्न होना) क्रिया के योग में पंचमी विभक्ति होती 12. 13. हिंसाअ/हिंसाइ/हिंसाउ/हिंसाए/हिंसाओ/हिंसत्तो/हिंसाहिन्तो (5/1) अहिंसा (1/1) गुरुअरा (वि. 1/1) अत्थि। नियम 9- जिससे किसी वस्तु या व्यक्ति की तुलना की जाए, उसमें पंचमी विभक्ति होती है। सो (1/1) णाण-गुणेण/णाण-गुणेणं (3/1) विहिणो (वि. 1/1)अत्थि। नियम 10 - पंचमी के स्थान में कभी-कभी कहीं-कहीं तृतीया और सप्तमी विभक्ति पाई जाती है। सो (1/1) भावा/भावाउ/भावाओ/भावत्तो/भावाहि/भावाहिन्तो (5/1) विरत्तो (वि.1/1) हवइ/हवेइ/आदि। नियम 7- दुगुच्छ (घृणा), विरम (हटना) और पमाय (भूल, असावधानी) तथा इनके समानार्थक शब्दों या क्रियाओं के साथ पंचमी होती है। 14. 36 प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15. 1. 2. 3. 4. धम्मा / धम्माउ / धम्माओ / धम्मत्तो / धम्माहि/धम्माहिन्तो ( 5 / 1 ) विणा जीवणं (1/1) असारं अथवा णिरत्थं (वि. 1 /1) अत्थि। नियम 11 - 'विणा' के योग में पंचमी विभक्ति भी होती है। षष्ठी विभक्तिः सम्बन्ध कारक अभ्यास 5 रहुणन्दणो (1 / 1 ) अज्झयणस्स (6 / 1 ) हेउणो / हे उस्स (6 / 1 ) गंथं (2/1) पढइ/पढेइ/पढए / आदि । नियम 1- हेउ (प्रयोजन या कारण अर्थ में) शब्द के साथ षष्ठी विभक्ति होती है। हे शब्द तथा कारण या प्रयोजनवाची शब्द दोनों को ही षष्ठी विभक्ति में रखा जाता है। सो (1/1) कस्स उणो / हेउस्स (6/1 ) केण हेउणा (3 / 1 ) कत्तो उत्तो (5/1) आगच्छीअ। नियम 2- यदि हे शब्द के साथ सर्वनाम का प्रयोग किया गया है तो हेउ शब्द और सर्वनाम दोनों में विकल्प से तृतीया, पंचमी या षष्ठी विभक्ति होती है। गिरीसु / गिरीसुं ( 7 / 2 ) गिरीण / गिरीणं (6 / 2 ) मेरू ( 1 / 1 ) अईव उण्णमइ / उण्णमेइ / उण्णमए / आदि । नियम 3 - एक समुदाय में से जब एक वस्तु विशिष्टता के आधार से छाँटी जाती है, तब जिसमें से छाँटी जाती है उसमें षष्ठी या सप्तमी विभक्ति होती है। पुत्तीअ/पुत्तीआ/पुत्ती / पुत्तीए (4 / 1 या 6 / 1 ) कुसलो ( 1 / 1 ) | नियम 4 - आशीर्वाद देने की इच्छा होने पर कुसल शब्द के साथ चतुर्थी या षष्ठी विभक्ति होती है। प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only 37 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5. 6. अहं/हं/अम्मि (1/1) महावीरस्स (2/1-6/1) वन्दमि/वन्दामि/ वन्देमि। नियम 5- द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति होती है। सो (1/1) धणस्स (6/1) धणवन्तो (1/1) हविओ। नियम 5- तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति होती है। सो (1/1) सीहस्स (5/1+6/1) डरइ/डरेइ/डरए/आदि। नियम 5- पंचमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति होती है। .. तस्स (6/1) घरस्स (7/1+6/1) पहाणा (1/2) अत्थि। नियम 5- सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति होती है। 2. सप्तमी विभक्तिः अधिकरण कारक अभ्यास 6 1. नरिंदो (1/1) आसणे/आसणम्मि (7/1) चिट्ठिओ। नियम 1- कर्ता की क्रिया का आधार या कर्म का आधार अधिकरण कारक होता है। वह सप्तमी विभक्ति में रखा जाता है। सो (1/1) घरे/घरम्मि (7/1) वसइ/वसेइ/वसए। नियम 1- कर्ता की क्रिया का आधार या कर्म का आधार अधिकरण कारक होता है। वह सप्तमी विभक्ति में रखा जाता है। कोहे/कोहम्मि (7/1) उवसमि/उवसमम्मि (7/1) करुणा (1/1) होइ। नियम 2- जब एक कार्य के हो जाने पर दूसरा कार्य होता है तो हो चुके कार्य में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है। हो चुके कार्य के वाक्य में अकर्मक क्रिया का प्रयोग होने पर वाक्य कर्तृवाच्य में होगा। कर्तृवाच्य में कर्ता और कृदन्त में सप्तमी होती है। 4. दुस्सीले/दुस्सीलम्मि (7/1) णसिणसम्मि (7/1) सीलं (1/1) फुरइ/फुरेइ/फुरए/आदि। 38 प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नियम 2- जब एक कार्य के हो जाने पर दूसरा कार्य होता है तो हो चुके कार्य में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है। हो चुके कार्य के वाक्य में अकर्मक क्रिया का प्रयोग होने पर वाक्य कर्तृवाच्य में होगा। कर्तृवाच्य में कर्ता और कृदन्त में सप्तमी होती है। आगमेसु/आगमेसुं (2/2-7/2) जाणिऊण/जाणिऊणं/जाणिदूण/ जाणिदूणं/जाणिअ/जाणिय/जाणिउं/जाणित्ता (संकृ) तुज्झ सच्चं (1/1) कही। नियम 3- द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति भी हो जाती अणुचरेसु/अणुचरेसुं (3/2-7/2) सह संभासिऊण/संभासिऊणं/ संभासिदूण/संभासिदूर्ण/संभासिअ/संभासिय/संभासिउं/संभासित्ता (संकृ) सो (1/1) गच्छिओ। नियम 3- तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति भी हो जाती है। विसए (5/1-7/1) विरत्तचित्तो (1/1) जोई हवइ/हवेइ/हवए। नियम 3- पंचमी विभक्ति के स्थान पर कभी-कभी सप्तमी विभक्ति होती है। ___7. प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक 39 For Personal & Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 40 अव्यय अभ्यास 7 एगया तो / तस्स बप्पो कज्ज -पसंगेण विएसं गओ । तइया / ता सो इंददत्तो वि निएण पुत्तेण सह तत्थ आगयो । परं सो सोमदत्तो तओ तस्स पयारस्स सुंदरअमं सिप्पिकलं काउं समत्थो . ण हुआ। तइया णरेहिं पुहवी खणिआ। तुमं जत्थ गच्छहिसि तत्थ सोक्खं एव लभिहिसि। इह/एत्थ/एत्थं णाणा पयारस्स सुहाई दुहाई च अत्थि। तस्स / तास घरो मइ / मम घरस्स अग्गओ अत्थि। एवं सो सुण समयं गमइ / गमए । तयाणि / तयाणि रायगिहं णयरं आसि । रायगिहस्स नयरस्स बहिया / बहि / बहिं / बहित्ता सुंदर उज्जाणं आसि । . जत्थ ताअ घरो आसि तत्थ सा गच्छइ । सणियं णयरत्तो / णयराओ बहिया / बहि / बहिं / बहित्ता णीसरिआ । सीया रामेण सह वणं गच्छिआ। हे पुत्तो ! तुमं विदूरं गच्छहिसि ता अहं तुमं विणा कहं वसिहिमि । साउभोयणरया एते/एए जामायरा खरस्स समाणा माणहीणा संति तेण एते / एए जुत्तीए निक्कालिअव्वा । सासू एते जामायरा अतीव पिय अत्थि, तेण एते पंच छ दिणाइं ठायस्स इच्छन्ति पच्छा गच्छिहिन्ति/गच्छिस्सन्ति। एगया ससुरेण भित्तीए लिहियं सुत्तिं पढिऊण (एअं) विआरिअं । संसारम्मि विणा मुल्लं भोयणं कत्थ अत्थि ? जिनसासणें रहुणन्दणस्स कहा कहं कहिआ, कहहि ? प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20. 21. 24. जइ तुज्झ मणं चंचलं अत्थि, ता तं रोक्कहि/रोक्कसु/रोक्कधि। तुम उवगुरुं सिक्खं गिण्हहि। अहं/हं/अम्मि पइदिणं झाणं करमि। तुमं/तुं/तुह नियस्स जहासत्तिं परिस्समहि। इन्देण तिहत्तं/तिक्खुत्तो (जिणवरो) पदक्खिणिओ। सिसू सयितुं रोवइ। भाई परोप्परं/परुप्परं कलहन्ति। मम ससा मायाए समयं गच्छिऊण गंथा कीणइ। 28. णाणेण विणा णरो पसुस्स/पसुणो सरिसो होइ। 29. अहं खलु तुम्ह घरं आगच्छिहिमि। 30. णिच्वं/सया हरिसहि/हरिससु/हरिसधि/आदि। 27. प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक 41 For Personal & Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only