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________________ धरणियलोसित्तअंसुनिवहाओ = धरणियल+ओसित्तअंसुनिवहाओ (आँसुओं के समूह के कारण जमीन भिगोयी हुई) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। एक्कमेक्कं = एक्क+म+एक्कं (प्रत्येक) नियम 5- पदों की द्विरुक्ति में सन्धि विधानः जहाँ पदों की द्विरुक्ति हुई हो, वहाँ दो पदों के बीच में 'म्' विकल्प से आ जाता है। जणवयाइण्णा = जणवय+आइण्णा (जनपद से परिपूर्ण) . नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। विझाडवी = विज्झ+अडवी (विन्ध्याटवी) . नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। दिवसवसाणे = दिवस+अवसाणे (दिन का अन्त होने पर) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। मणभिरामं = मण+अभिरामं (मन के लिए रुचिकर) , नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। पाठ 8-रामनिग्गमण-भरहरज्जविहाणं जिणाययणे = जिण+आययणे (जिन विश्राम स्थल में) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। कल्लोलुच्छलियसंघाया = कल्लोल+उच्छलियसंघाया (तरंगो का समूह उठा हुआ है) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। सीह-ऽच्छभल्लचित्तयघणपायवगिरिवराउले = सीह+अच्छभल्लचित्तयघण पायवगिरिवर+आउले (सिंह, रीछ, भालू, चीते और सघन वृक्षों एवं पर्वतों से व्याप्त) 10 प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004211
Book TitlePrakrit Vyakaran Abhyas Uttar Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2012
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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