Book Title: Prakrit Vyakaran Abhyas Uttar Pustak
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 39
________________ 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 30 तुमं / तुं / तुह ( 1 / 1 ) अग्गिं ( 3 / 1-2 / 1 ) भोयणं ( 2 / 1) पचहि / पचसु / पचधि/पच/पचेज्जसु/पचेज्जहि/पचेज्जे । नियम 2- करण 3 / 1 के स्थान पर द्वितीया विभक्ति । नरिंदो (1/1) मंति/मंती (2 / 1) णयरं ( 7 / 1-2 / 1 ) वह / वह / वह अथवा णीणइ / णीणेइ/णीणए / आदि । नियम 2- अधिकरण 7/1 के स्थान पर द्वितीया विभक्ति। अहं / हं / अम्मि (1 / 1 ) देवउलं ( 2 / 1 ) गच्छमि / गच्छामि / गच्छेमि । नियम 3 - सभी गत्यार्थक क्रियाओं के योग में द्वितीया विभक्ति होती . सो (1/1) रत्तिं (7/12/1 ) मित्तं (2 / 1) सुमरइ / सुमरेइ / सुमरए। नियम 4- सप्तमी विभक्ति के स्थान पर कभी-कभी द्वितीया विभक्ति होती है। सुअणस्स (6 / 1 ) विज्जुफुरियं (1 / 1-2 / 1 ) कोहो ( 1 / 1 ) हवइ / हवेइ / हवए / हवदि / आदि । नियम 5- प्रथमा विभक्ति के स्थान पर कभी-कभी -द्वितीया विभक्ति होती है। देवा (1/2) सग्गं ( 2 / 1 ) उववसन्ति / उववसन्ते / उववसिरे / अनुवसन्ति / अहिवसन्ति / आवसन्ति / आदि । नियम 6- यदि वस क्रिया के पूर्व उव, अनु, अहि और आ में से कोई भी उपसर्ग हो तो क्रिया के आधार में द्वितीया होती है। कण्हं (2 / 1) सव्वओ बालआ (1/2) अत्थि । नियम 7- सव्वओ (सब ओर ) के साथ द्वितीया विभक्ति होती है। यरं (2/1) समया सरिआ ( 1 / 1 ) अत्थि । नियम 7 - समया (समीप) के साथ द्वितीया विभक्ति होती है। यरस (6/1) अंतियं ( 2 / 1 ) सरिआ ( 1 / 1 ) अत्थि। नियम 11 - अंतिय (समीप) द्वितीया विभक्ति में प्रयोग तं ( 2 / 1 ) अन्तरेण / विणा अहं / हं / अम्मि (1 / 1 ) गच्छमि / गच्छामि / हुआ गच्छेमि । Jain Education International है। प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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