Book Title: Prakrit Vyakaran Abhyas Uttar Pustak
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 47
________________ 5. 6. अहं/हं/अम्मि (1/1) महावीरस्स (2/1-6/1) वन्दमि/वन्दामि/ वन्देमि। नियम 5- द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति होती है। सो (1/1) धणस्स (6/1) धणवन्तो (1/1) हविओ। नियम 5- तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति होती है। सो (1/1) सीहस्स (5/1+6/1) डरइ/डरेइ/डरए/आदि। नियम 5- पंचमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति होती है। .. तस्स (6/1) घरस्स (7/1+6/1) पहाणा (1/2) अत्थि। नियम 5- सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति होती है। 2. सप्तमी विभक्तिः अधिकरण कारक अभ्यास 6 1. नरिंदो (1/1) आसणे/आसणम्मि (7/1) चिट्ठिओ। नियम 1- कर्ता की क्रिया का आधार या कर्म का आधार अधिकरण कारक होता है। वह सप्तमी विभक्ति में रखा जाता है। सो (1/1) घरे/घरम्मि (7/1) वसइ/वसेइ/वसए। नियम 1- कर्ता की क्रिया का आधार या कर्म का आधार अधिकरण कारक होता है। वह सप्तमी विभक्ति में रखा जाता है। कोहे/कोहम्मि (7/1) उवसमि/उवसमम्मि (7/1) करुणा (1/1) होइ। नियम 2- जब एक कार्य के हो जाने पर दूसरा कार्य होता है तो हो चुके कार्य में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है। हो चुके कार्य के वाक्य में अकर्मक क्रिया का प्रयोग होने पर वाक्य कर्तृवाच्य में होगा। कर्तृवाच्य में कर्ता और कृदन्त में सप्तमी होती है। 4. दुस्सीले/दुस्सीलम्मि (7/1) णसिणसम्मि (7/1) सीलं (1/1) फुरइ/फुरेइ/फुरए/आदि। 38 प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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