Book Title: Prakrit Vyakaran Abhyas Uttar Pustak
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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नरिंदो (1/1) मंतिस्स/मंतिणो (4/1) कुज्झइ/कुज्झेइ/कुज्झए/आदि। नियम 4- कुज्झ (क्रोध करना), क्रिया के योग में जिसके ऊपर क्रोध किया जाए उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। मंती (1/1) नरिंदं (2/1) अथवा नरिंदस्स (4/1) णमइ/णमेइ/णमए। नियम 5- ‘णम' क्रिया के योग में द्वितीया और चतुर्थी विभक्ति दोनों होती हैं। धन्नं (1/1) भोयणस्स (4/1) अलं अत्थि। नियम 6- अलं (पर्याप्त) के अर्थ में चतुर्थी विभक्ति होती है। .. सो (1/1) मुत्तीअ/मुत्तीआ/मुत्तीइ/मुत्तीए (4/1) सिहइ/आदि। नियम 7- सिह (चाहना) क्रिया के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। माया/माय (1/1) पुत्तीअ/पुत्तीआ/पुत्तीइ/पुत्तीए (4/1) कहा/ ... कह (2/1) कहइ/कहेइ/कहए अथवा संसइ/संसेइ/संसए अथवा चक्खइ/चक्खेइ/चक्खए/आदि। नियम 8- कह (कहना), संस (कहना), चक्ख (कहना) क्रियाओं के योग में जिस व्यक्ति से कुछ कहा जाता है उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। नरिंदो (1/1) भोयणत्थं (4/1) अच्छइ/अच्छेइ/अच्छए/आदि। नियम 9- चतुर्थी के अर्थ में अत्थं (अव्यय) का प्रयोग भी होता है। सो (1/1) नरिंदस्स (4/1) ईसइ/ईसेइ/ईसए/आदि। नियम 4- ईस (ईर्ष्या करना) क्रिया के योग में जिससे ईर्ष्या की जाए उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। रहुणन्दनो (1/1) असच्चस्स (4/1) असूअइ/असूएइ/असूअए/आदि। नियम 4- असूअ (घृणा करना) क्रिया के योग में जिससे घृणा की जाए उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है।
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पंचमी विभक्तिः अपादान कारक
अभ्यास 4 1. गिरीउ/गिरीओ/गिरिणो/गिरित्तो/गिरीहिन्तो (5/1) सरिआ
(1/1) णीसरइ/णीसरेइ/णीसरए/आदि।
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प्राकृत-व्याकरण अभ्यास उत्तर पुस्तक
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